Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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६०४
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भारत - भैषज्य - रत्नाकरः
(५१) विसर्पाधिकारः
कषाय-प्रकरणम्
७७८६ सारिवादिकाथः विसर्पको शीघ्र नष्ट करता है ।
लेप७४४५ शतधौतसर्पिः लेप: हर प्रकारका विसर्प
प-प्रकरणम्
चूर्ण-प्रकरणम्
(५२)
८४५६ हरीतकीयोगः
कफवातज वृद्धि नाशक सरल योग ।
८४७१ हरीतक्यादिचू० पुराना वृद्धि रोग (स. यो. )
घृत-मकरणम्
७३५८ शतपुष्पाद्यं वृतम् अन्त्रवृद्धि, वातवृद्धि,
पित्तवृद्धि मेद, श्लीपद, मूत्रवृद्धि
कषाय-प्रकरणम्
७२०८ शरपुङ्खारसयोगः शस्त्राघात, सरलयोग
७२११ शास्खोटादियोगः व्रणका वातज शोथ
वृद्धधिकारः
गुग्गुलु -प्रकरणम् ७९१९ सप्तांग गुग्गुलुः नाड़ीत्रण, भगन्दर
७४७४ शिरीषादि लेपः
७४७५ शिरीषाष्टकः
८५६६ हरेण्वादि
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(५३) व्रणाधिकारः
७४५२ शम्बूकयोगः
"
७९६७ सौ रवरघृ० अत्रवृद्धि, शोध, अर्श
विसर्प और दाहको शीघ्र नष्ट करता है ।
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विसर्प, प्रस्वेद
विसर्प
लेप-प्रकरणम्
[ विसर्प
रस-प्रकरणम्
७५८४ शशि शेखर रसः अन्त्रवृद्धि ७६८८ श्वदंष्ट्रादि चूर्णम् वातज व
कुरंड रोग
घृत-प्रकरणम्
७३९१ श्यामाघृतम् ठाण ८०७५ स्वर्जिकादिधृ० ब्रणकी खाज, कृमि, शो
धक, रोपण
तैल-1 -प्रकरणम्
८००३ सैन्धवाथं तैलम् गम्भीर कफ वातज नाड़ी ब्रणको शीघ्र नष्ट करता है।
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