Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 630
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राधनिक चिकित्साशास्त्र धर्मवत्त वैद्य इस ग्रन्थ की यह विशेषता है कि इसमें आधुनिक काय-चिकित्सा के वर्णन के साथ-साथ प्रायुर्वेदिक काय-चिकित्सा का भी उल्लेख है। ये दोनों एक-दूसरे के सहायक सिद्ध हुए हैं। जहां प्राधुनिक काय-चिकित्सा How के प्रश्न का समाधान करती है वहां आयुर्वेदिक काय-चिकित्सा Why के प्रश्न का समाधान करती है, अर्थात् रोग का मूल कारण बताती है, जिसके फलस्वरूप चिकित्सा सुगम और ठीक होती है। यह स्पष्ट बताती है कि शरीर के तीन मूल तत्त्व देहाग्नि, देहप्राण, तथा देहवृद्धि हैं। इनके किसी अंग में मन्दता आ जाने से रोगोत्पत्ति होती है। आयुर्वेद का एक विशेष दृष्टिकोण है जिससे वेदोषिक या धातुक चिकित्साशास्त्र का अध्ययन किया जाता है और रोगों में प्रौषध, आहार, विहार आदि उपचारों का विधान किया जाता है। आयुर्वेद का मूल वैदोषिक दृष्टिकोण कभी नहीं बदला चाहे औषधियां भले ही बदलती रहें। अतः आयुर्वेद उपचारों के प्रयोग में स्वतन्त्रता देता है। इस प्रकार प्रायुर्वेद चिकित्साशास्त्र का छात्र धातुक या दोषिक दृष्टिकोण को कभी दृष्टि से प्रोझल नहीं होने देता। इसलिए इन दोनों चिकित्सामों के अध्ययन से अवश्यमेव लाभ ही होगा क्योंकि दोनों का लक्ष्य रोगी को रोगमुक्त करना ही है। (सजिल्द) ० १४० (अजिल्द) ० ९५ मानव-शरीर-रचना (दो भागों में) मुकुन्दस्वरूप वर्मा सम्पूर्ण चिकित्साशास्त्र आयुर्वेद के जिन तीन मूल आधारों पर आश्रित है उन्हें शरीररचनाविज्ञान, शरीरक्रियाविज्ञान और विकृतिविज्ञान कहते हैं उनमें शरीररचनाविज्ञान का महत्वपूर्ण स्थान है । इसके बिना अन्य प्रायुर्वेदशाखामों का ज्ञान होना सम्भव ही नहीं। _इस विषय में पाश्चात्य वैज्ञानिकों के ही अनुसंधान उपयोगिता की दृष्टि से प्रत्यन्त लाभप्रद सिद्ध हुए हैं। पाश्चात्य भाषाओं से अपरिचित चिकित्सक इन अनुसंधानों से लाभ नहीं उठा सकते। इस अभाव की पूर्ति के लिए इस ग्रन्थ की रचना की गई है। दुरूहता को हटाने के लिए अंग्रेजी पारिभाषिक शब्दों के अनुवाद में स्वीकृत वैज्ञानिक-तकनीकी-शब्दावली का प्रयोग किया गया है और सैकड़ों चित्रों से समझाया गया है। प्रथम भाग में ऊतकविज्ञान (Histology), भ्रूणविज्ञान (Embryology) और अस्थिविज्ञान (Osteology) विषयों का वर्णन है और द्वितीय भाग में सन्धिविज्ञान (Syndesmology), मांसपेशीविज्ञान (Myology) और वाहिकाविज्ञान (Angiology) विषयों का विवेचन हुआ है। यह कृति शरीर-रचना के जिज्ञासुत्रों के लिए अतीव उपयोगी सिद्ध होगी। प्रथम भागः रु. ५० द्वितीय भागः (प्रजिल्द) रु० ७५; (सजिल्द) रु० १०० मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली वाराणसी पटना मद्रास For Private And Personal Use Only

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