Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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६०६
भारत-मेषज्य-रत्नाकरः
[शिरोरोग
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अञ्जन-प्रकरणम्
। ७४८४ श्यामादिलेपः त्रिदोषज शिरपीडाको ८०९५ सुप्रचेतना गुटिका शिरपीड़ा
तुरन्त नष्ट करता है।
८०२४ सरलादि , कफज शिरपीड़ा नस्य-प्रकरणम्
८०२५ , , , "" ७५१४ शर्करादिनस्यम् वातज तथा रक्तज भ्र. ८०४९ सिन्दूरादि , बालोंको तुरन्त काला शूल, शंखमूल, अर्धाव
करने वाला केशकल्प मेद, सूर्यावर्त ८०७३ स्तुह्यर्कादि , शिरोबण, कण्डू ७५९५ शालिपादि
८५६७ हरेवादि , कफज शिरपीड़ा ___ नस्यम् अर्धावभेद ८५७१ हस्तिदन्तादि केशकल्प (खिजाब) ७५२० शिरीषादियोगः ।
८५७२ हस्तिदन्तायो खालित्य ७५२१ शिरोतिहररसः शिरपीड़ा ८११६ सितोपलादिनस्यम् अर्धावभेद
रस-प्रकरणम्
७५८८ शिरोरोगारिरसः सूर्यावर्तादिको १सप्ताहमें लेप-प्रकरणम्
नष्ट करता है. ७४५० शतावर्यादिलेपः सूर्यावर्त | ७५८९ शिरोवजरसः हर प्रकारको शिरपीड़ा ७४५६ शारिवादि , , अर्धावभेद
में उत्तम है. ७४५७ , , , , । ८२८९ सूर्योदय रसः १सप्ताहमें सूर्यावर्तादि ७४८० शुण्ठ्यादि , कफज शिरपीड़ा
को नष्ट करता है।
(५५) शीतपित्ताधिकारः रस-प्रकरणम्
८६०३ हरिद्राखण्डः शीतपित्त, उदर्द, कोठ, ८२५७ सूतभस्मयोगः शीतपित्त
कंडू, ज्वर, शोथ, कृमि • ८६०२ हरिद्राखण्डः शीतपित्त, उदर्द और । कोठको १ सप्ताहमें नष्ट
मिश्र-प्रकरणम् करता है । खाजकी महौषध
८३९५ सिद्धार्थायुद्वर्तनम् शीतपित्त, उदर्द, कोठ
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