Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 589
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [क्षय, राजयक्ष्मा - आदि ७५९३ शिलाजतुयोगः क्षयको शीघ्र नष्ट करता है। ८६३६ हिरण्यगर्भरसः क्षय, श्वास, कास, ग्रहणी, ७६०३ , , भय वातव्याधि ७६११ शिलाजत्वादि ८६५६ हेमगर्भ पोटली क्षय लौहम् क्षय ८६५७ ,, , , क्षय, कास, श्वास, वायु, ७६२१ शिवागुटिका क्षय, उबर, अतिकृशता कफ, संग्रहणी ८६५८ ,, ,, क्षय, कास, श्वासादि ८१५० सप्तामृतलौहम् अत्युग्र यमा ८६५९ हेमगर्भपोटली ८१७७ सर्वसुन्दररसः राजयक्ष्मा, वातरोग ८६६० हेमगर्भ ,, ज्वर, क्षय, संग्रहणी आदि ८१८४ सर्वांगसुन्दर राजयक्ष्मा, वातपित्त ज्वर, ८६६१ , , , क्षय, कास, श्वास, संग्रवातकफज रोग हणी, कफ ८२८० सूर्यप्रभागुटिका ऊरःक्षत, शोथ, कास, ८६६२ , , , (ऊपरके समान) पार्श्वशूल, विषमज्वरादि ८६६७ हेमभृगांक असाध्य राजयक्ष्मा, शोथो. ८३२४ स्वयमग्निरसः क्षय दर, ग्रहणी, अर्श ८३२७ स्वर्णपत्ररसः क्षयको अवश्य नष्ट करता है ८६७५ हेमानकरससिन्दूर क्षयज पाण्डु, कास, क्षय ८३२८ स्वर्णपर्पटी क्षय, शोथ, ग्रहणी, कास, ८७३७ क्षयकुलान्तक समस्त प्रकारका क्षय, श्वासादि जीर्णज्वर, पित्तजकास, ८३३० स्वर्णभूपति त्रिदोषज क्षय, वातरोगादि रक्तपित्त, षण्ढत्व ८३४६ स्वर्णमाक्षिकादि ८७३८ क्षयकेसरी रसः एकादशरूप क्षय, ज्वर, उग्रराजयक्ष्मा वायु, शोष, कृमि, १.३६८ स्वर्णयोगः क्षय मेदरोग ८५९८ हरिनेत्ररसः क्षयनाशक (मृगांक वत्) ८७३९ क्षयकेसरी रसः क्षय ८५९९ हरिरुद्र रसः क्षय, (मृगांक वत्) ८७४० क्षयशामक रसः क्षय ८६०७ हरिरुद्र रसः क्षय | ८७४१ क्षयान्तकरसः क्षय, जीर्णज्वर, शिरोग्रह, ८६२२ हिंगुल भस्म क्षय, पाण्डु, शल (पौष्टिक)। अग्निमांद्य, वातकफ विकार waala (२१) क्षुद्ररोगाधिकारः घृत-प्रकरणम् , ८७२५ क्षार घृतम् । मशक, तिल, कालक, ७९५० सहाचरघृतम् तिल, कालक, मुखदू पद्मिनी कंटक, अलस षिका, पाददारी, अंगुली (खारवा) वेष्ठ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633