Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णप्रकरणम् ]
हर्र, अतीस, सेंधा नमक, काला नमक ( संचल ), बच और हींग समान भाग चूर्ण बनावें ।
कर
पञ्चमो भागः
इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे आमातिसार का नाश होता है । यह चूर्ण ग्राही और दीपन है ।
पाठान्तर के अनुसार स्थान पर " इन्द्रजौ " है ।
( मात्रा - ६ माशे । ) (८४६५) हरीतक्यादिचूर्णम् (७)
( ग. नि. । ज्वरा. १ ) चूर्ण हरीतकी हिङ्गुपिप्पलीनागरान्वितम् । मातुलुङ्गरसाक्तं तु सन्निपातज्वरे हितम् ||
हर्र, हींग, पीपल और सोंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे बिजौरेके रस में मिला कर सेवन करने से सन्निपात वर नष्ट होता है ।
( मात्रा - ४ रत्ती । )
( मात्रा - ६ रत्ती । ) (८४६४) हरीतक्यादिचूर्णम् (६) ( वृ. मा. 1 उदावर्ता; यो र.; वृ. नि. र. ग. नि. । उदावर्ता. १४ ) हरीतकी यवक्षार: पीलूनि त्रिवृता तथा । घृतैश्चूर्णमिदं मुदावर्तविनाशनम् ॥
( मात्रा -- २ - ३ माशे 1 ) (८४६७) हरीतक्यादिचूर्णम् (९) (ग. नि. । हृद्रोगा. २६; भै. र. । हृद्रोगा. ; वृ.नि. र. | हृद्रोगा. ) हरीतकी वचा रास्ना पिप्पली विश्वभेषजम् । इसे घृतमें मिलाकर पीनेसे उदावर्तका नाश | शठीपुष्करमूलं च चूर्ण हृद्रोगनाशनम् ॥
हर्र, जवाखार, पीलुके फल और निसोत समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
होता है।
हर्र, बच, राना, पीपल, सोंठ, कचूर और पोखरमूल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे सेवन करने से हृद्रोग का नाश होता है। ( मात्रा --- २ - ३ माशे । ) (८४६८) हरीतक्यादिचूर्णम् (१०)
" सेंधा नमक " के
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(८४६६) हरीतक्यादिचूर्णम् (८)
(व. से. । वातव्या . ; वृ. नि. र. । वातव्या . ) हरीतकी वचा रास्ना सैन्धवं चाम्लवेतसम् । घृतमार्द्रक संयुक्तमपतन्त्र कनाशनम् ॥
हरी, बच, राना, सेंधा नमक, अम्लवेत और अदरक (सोंठ) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे घी में मिला कर चाटने से अपतन्त्रक रोग नष्ट होता है ।
( रा. मा. । ज्वरा. २० ) चूर्ण शिवामलकचित्र पिप्पलीनां लक्ष्णीकृतं पिबति यः शिशिरोदकेन । दीप्तिं करोति च परां जठरानलस्य क्षीणेन्द्रियस्य कुरुते रतिशक्तिमेतत् ॥ हर्र, आमला, चीतामूल और पीपल समान भाग ले कर बारीक चूर्ण बनावें ।
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