Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[हकारादि
षण्मासान् निम्बमूलान्तसिं रम्भातरौ क्षिपेत् । | टिकिया रख दें तथा उस गढ़ेमें से जो नीमका भीमकर्पूरकस्तूर्योर्योगादान्ध्यं रुणद्धि सा | बुरादा निकला है उसीसे उसे भरकर गोबरसे बन्द
कर दें। ६ मास बाद उस टिकियाको निकालकर १ भाग रसौतको त्रिफलाके क्वाथमें घोलकर
केलेकी जड़में गाढ दें और फिर १ मास पश्चात् उसमें १-१ भाग काला और सफेद सुरमा बारीक
निकालकर छाया में सुखा लें। तदनन्तर उसे बारीक पीस कर मिला दें तथा उसकी ४-४ तोलेकी
पीसकर उसमें [चौथाई ( चतुर्थाश )] कपूर और टिकिया बना कर धूपमें सुखा लें।।
(कपूर से छठा भाग ) कस्तूरी मिलाकर बारीक इनमें से १ टिकियाको कपड़ेमें लपेटें और | सुरमा बना लें। इसे आंखमें लगाने से अन्धता फिर नीमकी जड़में एक गढ़ा करके उसमें वह | नहीं आती।
इति इकारायञ्जनपकरणम्
अथ हकारादिनस्यप्रकरणम् (८५९३) हरीतक्यादिनस्यम्
अदरकके रस में खांड मिलाकर उसकी, या (ग. नि. । रक्तपित्ता. ८ ; वृ. नि. र. ; यो. गोमूत्र में खरल किये हुवे गेरुकी अथवा अद्रकके
र. । रक्तपिता. : रा. मा. । नासा. ४) रसमें गुड मिलाकर उसकी नस्य लेनेसे हिचकी नष्ट हरीतकीदाडिमपुष्पदूर्वा
हो जाती है। लाक्षारसो नस्यविधानयागात् । निवारयत्येव चिरप्रवृत्त
(८५९५) हिग्वादिनस्यम् मप्याशु नासान्तरशोणितौघम् ।। (वै. जी. । वि. १ ; वृ. नि. र. । वरा.)
हरै, अनारके फूल, दूर्वा (दूब घास ) और लाख; इनके ( पृथक पृथक् अथवा सम्मिलित ) चातुर्थिको नश्यति रामठस्य रसकी नस्य लेने से पुराना नासाप्रवृत्त रक्तस्राव घृतेन जीणेन युतस्य नस्यात् । (नकसीर ) भी नष्ट हो जाता है।
लीलावतीनां नवयौवनानां (८५९४) हिक्काहरयोगाः
मुखावलोकादिव साधुभावः ॥ ( ग. नि. । हिक्का. ११) शर्कराशृङ्गबेरं च, गैरिकं मूत्रभावितम् । पुराने घृतमें हींग मिलाकर उसकी नस्य लेनेसे गुडाईकं च पादोक्तं हिक्कानं नावनत्रयम् ॥ चातुर्थिक ञ्चर (चौथिया) नष्ट हो जाता है।
इति हकारादिनस्यप्रकरणम्
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