Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
पञ्चमो भागः
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(८७४५) क्षारताम्ररसः (३)
(८७४६) क्षारयोगः (रे. र. स. । उ. अ. १८)
(वृ. नि. र. । अजीर्णा.) रसेन ताम्रस्य दलानि लिप्त्वा
द्वौ क्षारौ टङ्कणं मूतं लवङ्ग लवणत्रयम् । गंधेन ताम्रद्विगुणेन पश्चात् । पिप्पलीगन्धकं शुण्ठी मरीचं पलसम्मितम् ॥ वस्त्रेण बध्वाऽथ समुद्रजेन
कर्षमेकं विषं दत्त्वा सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । क्षारत्रयेणापि च वेष्टयित्वा । अर्कदुग्धस्य दातव्या भावनयः सप्तवासरम ।। मृदा व संलिप्य पुटं ददीत
अन्धमूषागजपुटे स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् । दलानि ताम्रस्य विचूर्णयेत् ।
ततो लवङ्ग मरिचं स्फटिकानां पलं पलम् ॥ धत्तूरचित्राकटुत्रयैश्च
सर्व सम्म सुदृढ ढभाण्डे निधापयेत् । विमर्दयेचत्रिगुणप्रमाणम् ॥
सोयं गुमाद्वयं खादेद्भुक्तं द्रावयति क्षणात् ॥
पुनर्भोजनवाञ्छां च जनयेत्पहरोपरि । कलाप्रमाणेन विषं च दत्वा
आममांसं द्रावयति श्लेष्मरोगनिकृन्तनः॥ वल्लं ददीतास्य च वातशूले ॥
जवाखार, सज्जीखार, सुहागेकी खोल, शुद्ध शुद्ध पारद १ भाग और शुद्ध गंधक २ भाग | पारद, लौंग, सेंधानमक, कालानमक, बिडलवण, लेकर कजली बनावें और ( उसे नीबूके रसमें |
पीपल, शुद्ध गंधक, सोंठ और काली मिर्च ५-५ खरल करके ) १ भाग शुद्ध ताम्रपत्रों पर उसका तोले तथा शुद्ध बछनाग १ तोला लेकर प्रथम पारे लेप करके उन्हें कपड़ेमें लपेटकर पोटली बनावें । गंधकको कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य तथा उसे सामुद्र लवण, जवाखार, सञ्जोखार औषधियोंका चूर्ण मिलाकर खरल करें । तदनन्तर
और सुहागे के समान भाग मिश्रित चूर्णके बीचमें उसे आकके दूधकी सात भावना देकर अंधमूषामें रखकर शरावसम्पुटम बन्द करक गजपुटम बन्द करके गजपुट में पकायें तत्पश्चात् उसमें ५-५ पकावें । और फिर स्वांगशीतल होने पर पीसकर तोले लौंगका चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और फिट. रख लें । ( यदि भस्म कच्ची हो तो पुनः पुट करीकी खील मिलाकर अच्छी तरह खरल करके लगावें । ) तत्पश्चात् उसे धतूरेके रस, चित्रकमूल
सुरक्षित रक्खें । के क्वाथ, अदरकके रस और त्रिकुटेके क्वाथकी
मात्रा-२ रत्ती। ३-३ भावना देकर उसमें उसका १६ वां भाग शुद्ध बछनाग मिलाकर खरल करें।
यह अत्यन्त पाचक है । भोजनोपरान्त इसे
खा लेनेसे १ पहर बाद पुनः भूख लग इसके सेवनसे वातज शूल नष्ट होता है।
' आती है। यह रस कच्चे मांस तकको भी पचा मात्रा-३ रत्ती।
। देता है । कफरोगोंमें भी गुणकारी है।
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