Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
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प्लीहा, गुल्म, शूल, अर्श, कास, विद्रधि और पुराने सोमरोमका शीघ्र ही नाश होता तथा बल, वर्ण और अग्नी वृद्धि होती है ।
अनुपान - बकरीका दूध, नारियलका पानी, शीत वीर्य पक्व तैल तथा जौका यूष इत्यादि । यह रस ग्रहविकार को भी नष्ट करता है (८२९७) सोमेश्वरो रस: (२)
(र. स. सु.; र. का. घे. । कुष्ठा. ) शुद्धं सूतं मृतञ्चाभ्रं गन्धकं मर्दयेत्समम् । दिनं निर्गुण्डीका द्रावै रुद्ध्वाहो भूधरे पचेत् ॥ उद्धृत्य वाकुचीतैले वाकुच्या वा कषायतः । दिनैकं मावयेद्धर्मे निष्कमात्रं च भक्षयेत् ॥ बाकुची काकमाची च त्रिफला चूर्णयेत्समम् । मध्वाज्यैः कर्षमात्रञ्च अनुपानमिदं लिहेत् ॥ कपालविषमं कुष्ठं हन्ति सोमेश्वरो रसः ॥
शुद्ध पारा, अभ्रक भस्म और शुद्ध गन्धक समान भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके कजली बनायें और उसे १ दिन संभालुके रसमें खरल करके गोला बना कर सुखा लें तथा उसे शरावसम्पुट में बन्द करके ९ दिन भूधरयन्त्र में पकावें । तत्त्पश्चात् उसके स्वांगशीतल होने पर गोलेको निकाल कर दिन बाबचीके तेल या क्वाथमें धूपमें खरल करें ।
मात्रा - १ निष्क ( ३ ॥ माशे ) अनुपान - बाबची, मकोय और त्रिफला समान भाग ले कर चूर्ण बनावें और उसमेंसे १/१। तोला चूर्ण शहद में मिलाकर उपरोक्त रस खाने के पश्चात् चाटें ।
इसके सेवन से कपाल कुष्ट नष्ट होता है ।
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[ सकारादि
(८२९८) सौगतवदी (सौस्तगुटिका)
(बृ. यो. त । त. १४७ ; यो त । त. ८० ) पारदगन्धकचम्पक केसर सुरकुसुमकरहाटाः । अजमोदाम्बुधिशोषौ जातीपत्रं च जातिफलम् ॥ प्रत्येकं भागैकं भागद्वितयं च शुद्धमहिफेनम् । वनवदरसदृशगुटिकाः
कार्या मधुनाऽथ भक्षयेदेकाम् || यामेsaid ललनासविधे
fter after कर्षम् । तैलाई भुञ्जीयादनुपानं चेत्तदेतस्य ॥
लिङ्गं कठिनतरं स्याद्वीर्यस्तम्भं भवेद्यामम् । एषा सौगतगुटिका सत्यं सत्यं च शुक्ररोधकरी ॥
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, चम्पाके फूलकी केसर, लौंग, अकरकरा, अजमोद, समुद्रशोष, जावित्री और जायफल १-१ भाग तथा शुद्ध अफीम २ भाग ले कर प्रथम पारे, गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य सब चीजोंका चूर्ण मिला कर पानी के साथ खरल करके जंगली are समान गोलियां बना लें 1
रात्रि के समय शहद के साथ १ गोली खा | कर १ पदर पस्चात तेल में मुनी अजवायन १ । तो. ( व्यवहारिक मात्रा - ३ माशे) खावें । यही इसका अनुपान है।
इसके प्रभाव लिंग अत्यन्त कठिन हो जाता है और १ प्रहर तक वीर्यम्नम्भन होता है । यह बात बिल्कुल सत्य है ।
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