Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
इसे ३॥ माशेकी मात्रानुसार दो मास तक रंगने में उपयोगी है और मजीठके रंगको पक्का सेवन करनेसे अर्श, वातरक्त, शोथ और स्पर्शवातका करती है । नाश होता है।
___ फिटकरी दो प्रकारकी होती है । एक प्रका.
रकी कुछ पीली, भारी और स्निग्ध होती है । यह ___ स्पर्शवातारिरसः (२)
"पीतिका' कहलाती है और विषको नष्ट करती प्र. ६१०५ " रसादि गुटी (२)" तथा है । यह व्रण तथा कुष्ठमें विशेष उपयोगी है। ७६४२ " शीतारि रसः (५)" देखिये। दूसरे प्रकारकी फिटकरी हल्को, श्वेत, स्निग्ध ___स्पर्शवातारिरसः (३) | और अम्लरस युक्त होती है, उसे “फुल्ल तुवरी"
प्र. सं. ७६४२ शीतारि रसः (५) । ( फूल फिटकरी ) कहते हैं। लेप करनेसे यह देखिये।
ताम्रको खा जाती है ( जीर्ण कर देती है । )
फिटकरी ( दानों प्रकारकी ) कषैली, कटु, (८३१२) स्फटिकाशोधनम्
अम्ल, कण्ठ और केशों के लिये हितकारी, बणनाशक, (र. र. स. । अ. ३) विषनाशक, स्वित्रनाशक, नेत्रों के लिये हितकारी, सौराष्ट्राश्मनि सम्भूता मृत्स्ना सा तुवरी मता।
त्रिदोषको शान्त करनेवाली और पारदजारण में
उपयोगी है। वस्त्रमारायेद्यासौ मनिष्ठारागबन्धिनी ॥ फटकी फुल्लिका चेति द्वितीया परिकीर्तिता।
फिटकरीको ३ दिन तक कांजीमें रखनेसे ईषत्पीता गुरुः स्निग्धा पीतिका विषनाशिनी। वह शुद्ध हो जाती है। वणकुष्ठहरा सर्वकुष्ठन्नी च विशेषतः ।
"सत्व पातनम् " निर्भारा शुभ्रवर्णा च स्निग्धा साम्लाऽपरामता | फिटकरीको क्षार और अम्ल पदार्थोके साथ सा फुल्लतुवरी प्रोक्ता लेपात्तानं चरेदियम् ॥ खरल करके मृषामें रख कर ध्मानेसे उसका सत्व कांक्षी कषाया कटुवः लकण्ठ्या
| निकल आता है। केश्या व्रणनी विषनाशिनी च । (८३१३) स्मृतिसागररसः श्वित्रापहा नेत्रहिता त्रिदोष
| ( यो. र. ; वृ. नि. र. । अपस्मारा. ; वृ. यो, शांतिपदापारदजारणी च ॥
त. तं ८९) नुवरी कांजिके क्षिप्ता त्रिदिनाच्छुद्धिमृच्छति ।
रसगन्धकतालानां सशिलाताम्रभस्मनाम् । क्षाराम्लैमर्दिताध्माता सत्त्वं मुश्चति निश्चितम् ॥ |
शुद्धानां मूर्छितानां च चूर्ण भाव्यं वचाशृतैः॥ तुवरी (फिटकरी ) सौराष्ट्र देशमें पर्वतोंमें एक विंशतिधा पश्चाद्ब्राह्मीवारा तथैव च । जाने वाली एक प्रकारकी मिट्टी है । यह वस्त्र । कटभीबीजतैलेन भावयेदेकवारकम् ।।
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