Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम् ]
पञ्चमो भागः
४०७
-
इसे पानमें रखकर अथवा गुड़ और अदरकके मुद्रां दत्त्वा भूतिसामुद्रकेण साथ या मद्यके साथ अथवा पीपलके चूर्ण और
यामं चैकं मन्दवह्नौ विपाच्य । शहदके साथ देना चाहिये।
वल्लं चैकं भक्षितं क्षौद्रयुक्तं स्वजिक्षारादियोगः
यक्ष्मारोगं नाशयेद्धि प्रसव ॥ प्र. सं. ८१५९ “सर्जीक्षारादियोगः” देखिये
__ सीसा भस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक और (८३२६) स्वर्णक्षारीरसः
शुद्ध बछनाग १-१ भाग ले कर सबको एकत्र ( शा. सं. । खं. २ अ. १२ ; र. र. स. खरल करके कजली बनावें और उसे १ दिन उ. अ. २०)
घृतकुमारीके रसमें खरल करके गोला बनावें तथा हेमाहां पञ्चपलिकां क्षिप्त्वा तक्रघटे पचेत् ।। उसे हाण्डीमें रख कर शरावसे ढक कर तके जीर्णे समुदघृत्य पुनः क्षीरघटे पचेत् ।। सन्धिको राख और समुद्र नमकके मिश्रणसे बन्द क्षीरे जीर्ण समुद्धृत्य क्षालयित्वा विशोधयेत् ।। कर दें । तदनन्तर उसे १ पहर मन्दाग्नि पर तच्चूर्ण पञ्चपालिकं मरिचानां पलद्वयम् ॥ पका और स्वांगशीतल होने पर निकाल कर पलैकं मृच्छितं मूतमेकीकृत्य तु भक्षयेत् । पीस लें । निष्कैकं सुप्तिकुष्ठातः स्वर्णक्षीरीरसो ह्ययम् ॥ ।
मात्रा-३ रनी। २५ तोले स्वर्णक्षीरीकी जड़को १ घड़ा तक में पकावें । जब तक सूख जाय तो उसे
इसे शहदके साथ सेवन करनेसे क्षयरोग निकालकर दूधके घड़ेमें पकावें । जब दूध भी जल अवश्य नष्ट हो जाता है। जाय तो स्वर्णक्षीरी मूलको निकाल कर धा डालें __( व्यवहारिक मात्रा-१ रत्ती।) और चूर्ण कर लें । अब २५ तोले यह चूर्ण, १०
(८३२८) स्वर्णपर्पटी तोले काली मिर्च और ५ तोले मूञ्छित पारद ले कर सबको एकत्र मिलाकर खरल करें।
(वृ. यो. त.। तं. ७६ ; वृ. नि. र. ; यो. मात्रा-१ निष्क ( ३॥ माशे।) र. । ग्रहण्य. ; र. रा. सु. ; भै. र. ; रसे. सा. इसके सेवनसे सुप्तिकुष्ठका नाश होता है।
सं. । ग्रहण्य. ; रं. चं. । ग्रहण्य. , राजयक्ष्मा.; (८३२७) स्वर्णपत्ररसः
वृ. नि. र. । क्षय. ; वृ. यो. त. । त. ६७ ; यो. (र. प्र. सु. । अ. ८)
र. । राजयक्ष्मा.) नाग मृतं गन्धकं वत्सनाभं
शुद्धसूतं पलमितं तुयशस्वर्णसंयुतम् । रसैर्मर्य कन्यकाया दिनैकम् । मर्दयेनिम्बुनीरेण यावदेकत्वमाप्नुयात् ॥ गोलं कृत्वा निक्षिपेद्भाण्डमध्ये
प्रक्षाल्योष्णाम्बुना पश्चात्पलमात्रे तु गन्धके। सम्छायं वै श्रावकेनापि सम्यक् ॥ द्रुते लोहमये पात्रे बादरानलयोगतः ॥
For Private And Personal Use Only