Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
पञ्चमो भागः
४१५
इसे २१ दिन तक घृतके साथ सेवन करने- नीचे ऊपर उसके बराबर गंधकका चूर्ण विछाकर, से रोगी और ८० वर्षका वृद्ध पुरुष भी युवाके | शरावसम्पुट में बन्द करें । तत्पश्चात् उसे २० समान स्त्री--समागम करने में समर्थ हो जाता है। जंगली उपों में फूंक दें। ( मात्रा-२-३ रस्ती )
इसी प्रकार (गंधकके बीचमें रख कर ) (८३४६) स्वर्णमाक्षिकादियोगः । | सात पुट देनेसे निरुत्थ भस्म हो जाती है । . (वृ. नि. र. । क्षय. )
(८३४८) स्वर्णमारणम् (२) मधुताप्यविडङ्गाश्मजतु लोहं घृतं मतम् ।
(र. चं. ; र. प्र. सु.। अ. ४) हन्ति यक्ष्माणमत्युग्रं सेव्यमानं हिताशिनः ॥ हेम्नःमूक्ष्मदलानि भूर्जसदृशान्यादाय संलेप्य वै । ___स्वर्ण माक्षिक भस्म, बायबिडंग, शिलाजीत | वज्रीदुग्धकहिङ्गहिङ्गलसमैरेकत्र पिष्टीकृतैः ।।
और लोहभस्म समान भाग ले कर सबको एकत्र सत्यं सम्पुटके निधाय दशभिश्चैवं पुटै कुकुटैः। मिला कर सेवन करनेसे उग्र राजयक्ष्मा भी नष्ट हो पाच्य हेम च रक्तगैरिकसमं समायते निश्चितम् ॥ जाता है।
सोनेके, भोजपत्रके समान बारीक पत्रों पर ( मात्रा-२ रत्ती)
समान भाग मिलित थूहरका दूध, हींग और अनुपान-घी और शहद.
शिंगरफका लेप करें ( यह मिश्रण स्वर्णके बराबर (८३४७) स्वर्णमारणम् (१)
तथा अच्छी तरह घुटा हुवा होना चाहिये । )
तदनन्तर उन्हें शराबसम्पुट में बन्द करके कुक्कुट ( भा. प्र । पृ. खं. १ ; वृ. यो. त. । त. ४१; पुटमें फंकें । रसे. सा. सं. ; यो. र.; शा. ध.)
इस प्रकार दस पुट देनेसे सोनेकी, गेरूके काश्चने गलिते नाग पोडशांशेन निक्षिपेत् । समान लाल रंगकी भस्म हो जाती है । चूर्णयित्वा तथाम्लेन घृष्ट्वा कृत्वा तु गोलकम् ॥
। (८३ ४९) स्वर्णमारणम् (३) गोलकेन समं गन्धं दत्त्वा चैवाधरोत्तरम् ।
(वृ. यो. त. । त. ४१ ; आ. वे. प्र. । अ.
। शरावसम्पुटे धृत्वा पुटे द्विंशद्वनोपलैः ।।
११ ; र. रा. सु.) एवं सप्तपुरैर्हम निरुत्थं भस्म जायते ॥
रसस्य भस्मना वाऽथ रसेनाऽऽलिप्य तद्दलम्। स्वर्णको गलाकर उसमें उसका १६ वां भाग हिलिसिन्दरशिलासाम्येन मेलयेत् ॥ सीसार मिलाकर खरल करें और फिर नीबूके । सम्पर्य काश्चनद्रावैर्दिनं कृत्वाऽथ गोलकम् । रसमें खरल के गोला बना लें । इस गोलेको, तंभाण्डस्य तले दत्त्वा भस्मना पूरयेवम् ।।
xआ. वे. प्र. के मतानुसार स्वर्णके बराबर अग्नि प्रज्वालयेदगाढं द्विनिशं स्वाङ्गशीतलम् । पारद भी डालना चाहिये ।
| उद्धृत्य सावशेष चेत्पुनर्देयं पुटद्वयम् ॥
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