Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
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(८४०३) सैन्धवाद्याइच्योतनम् (२) मूत्र रोकनेसे उत्पन्न हुवे उदावर्त में शराबमें
( ग. नि. । नेत्ररो. ३ ; वृ. मा. । नेत्र.) काला नमक मिलाकर पिलाना या इलायचीका चूर्ण ससैन्धवं रोधमथाज्यभृष्टं
(गुड़के साथ) खिलाना या दहीके पानीके साथ ___ सौवीरपिष्टं सितवस्त्रबद्धम् ।
भात देना अथवा दूध या त्रिफलाका क्वाथ पिलाना ह्याश्चोतनं तन्नयनस्य कुर्या
चाहिये। कण्डूं च दाहं च रुजं च हन्यात् ॥ । (८४०६) स्नुक्क्षारयोगः सेंधा नमक और घी में भुना हुवा लोध
(वै. म. र. । पटल ११) समान भाग ले कर दोनोंको सौवीरक कांजीमें पीस क्षारो महावृक्षज आशु हन्याकर सफेद कपड़े में बांधकर आंखमें निचोड़ने से | देरण्डतैलेन सहानुलिप्तः । आंखकी खाज, दाह और पीडाका नाश होता है। कण्डूतिमन्तं किटिभं पुराणं (८४०४) सोमलचूर्णयोगः
सर्प कठोरो गरुडो यथैव ।। ( र. का. धे. । अर्शी.)
स्नुही ( सेंड-थूहर ) के क्षारको अरण्डीके सोमक्षारस्य चूर्ण वै कार्पासान्तरसंस्थितम् । ।
। तेलमें मिलाकर लेप करनेसे खुजलीयुक्त पुराना धारयेद्गुदतो दूरे त्रिदिनं तच्च भेषजम् ॥
किटिभ रोग अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता है । पक्वानि स्फाटयित्वाशु तथापक्वानि नाशयेत। (८४०७) स्नुक्क्षीरयोगः न पीडा जायते तत्र न व्यथाऽपि भवेदगुदे॥ ( रा. मा. । स्त्रीरोगा.) न रोहन्ते पुनर्देहे गुदपावलित्रये ॥ न्यस्तेन मूर्धनि सुधापयसाऽल्पकेन
संखयेके चूर्णको रुई में लपेटकर गुदा पर बांध स्त्रीणामुपैति सहसैव हि गर्भशल्यम् । दें । रुई इस प्रकार लगानी चाहिये कि संखियका
स्त्रीके शिर पर जरासा थूहर ( सेंड-स्नुही ) चूर्ण गुदाको स्पर्श न करे । इस रुईको ३ दिन तक का दूध लगानेसे मूढ गर्भ तुरन्त निकल आता है। बंधा रहने दें।
(८४०८) स्नुक्क्षीरशोधनम् इस विधिसे अर्शके पक्के मस्से फट जाते हैं ।
(रसे. सा. सं.) और अपक्व नष्ट हो जाते हैं । इस प्रयोगसे तनिक चिश्चापत्ररसे कर्षे वस्त्रपूते पलद्वयम् । भी कष्ट नहीं होता और गुदाकी तीनो बलियों के । स्नुहीक्षीरं रौद्रयन्त्रे भावयेद्यत्रतः सुधीः ।। मस्से नष्ट हो जाते हैं तथा फिर नहीं उभरते। द्रवे शुष्के समुत्तार्य सर्वयोगेषु योजयेत् ॥ (८४०५) सौवर्चलादियोगः १० तोले स्नुही (सेहुंड-सेंड) के दूध १॥ ( यो. र. । उदावर्ता.)
तोला इमलीके पत्तोंका कपड़ेसे छना हुवा रस मिला सौवर्चलाढयां मदिरां मूत्रे त्वभिहते पिवेत् ।। कर मिट्टीके पात्र में भरकर धूपमें रख दें । जब दूध एलां वाऽयथ मस्त्वन्नं क्षीरं वाऽथ वराम्बु वा ।। शुष्क हो जाए तो सुरक्षित रक्खें ।
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