Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषायप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
४३९
अथवा नागरमोथा और सुगन्धवालाका पानी देना पाययेत्तेन सद्यो हि रक्तपित्तं प्रणश्यति । चाहिये । रक्तपित्तं जयत्युग्रं तृष्णां दाहं ज्वरं तथा ॥
( १ तोला औषधको १ सेर पानी में पकाकर आध सेर रहने पर छान लें । )
(८४४४) हाबेरादिक्रवाथ : ( ५ )
( वृ. नि. र. । अतिसारा; शा. सं. । खं. २ अ. २ )
हीरात कीलोपाठाल जालवत्सकैः । धान्यकातिविषामुस्तगुडू वीबिल्वनागरैः || कृतः कषायः शमयेदती सारं चिरोत्थितम् । अरोचकामशूलास्त्रज्वरघ्नः पाचनः स्मृतः ॥
सुगन्धवाला, धायके फूल, लोध, पाठा, लज्जालु की जड़, इन्द्रजौ, धनिया, अतीस, नागरमोथा, गिलोय, बेलगिरी और सांठ समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
यह क्वाथ पुराने अतिसार, अरुचि, आम, शूल, रक्तस्राव और ज्वरको नष्ट करता है एवं पाचन है ।
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(८४४५) ह्रीवेरादिक्वाथः (६) ( भै. र. । रक्तपित्ता. ; वृ. नि. र. । रक्तपित्ता. व. से. । रक्तपित्ता. ) हीबेरमुत्पलं धान्यं चन्दनं यष्टिकामृता उशीरच त्रिवृचैषां क्वाथं समधुशर्करम् ||
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सुगन्धबाला, नीलोत्पल, धनिया, लाल चन्दन, मुलैठी, गिलोय, खस और निसोत समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
इसमें खांड और शहद मिलाकर पीने से उम्र रक्तपित्त, तृष्णा, दाह और ज्वरका शीघ्र ही नाश हो जाता है ।
(८४४६) ह्रीवेरादिक्वाथः ( ७ )
( यो. र. । रक्तपित्ता. ; वृ. नि. र. । रक्तपित्ता. ; व. से । ज्वरा. )
हीबेरं वान्यकं शुण्ठीं चन्दनं मधुयष्टिका । वृषोशोरयुतः क्वाथः शर्करामधुयोजितः || रक्तपित्तं जयत्युग्रं तृष्णां दाहं ज्वरं तथा ।।
सुगन्धवाला, धनिया, सोंठ (पाठान्तर के अनुसार नागरमोथा), लाल चन्दन, मुलैठी, बासा (अडूसा) और खस समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
इसमें खांड और शहद मिला कर पीने से प्रबल रक्तपित्त, तृष्णा, दाह और ज्वर का नाश होता है ।
१ ह्रीबेरं धान्यकं मुस्तमिति पाठान्तरम् ॥
इति हकारादिकषायप्रकरणम्
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