Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
(८३३०) स्वर्णभूपतिरसः मिला कर सबको हंसपदीके रसमें एक दिन खरल ( र. चं. , वृ. नि. र. ; २. रा. सु. ; यो. र. ।
करें और उसकी गोलियां बना कर सुखा लें । राजयक्ष्मा.)
तत्पश्चात् उन गोलियोंको कपड़मिट्टी की हुई
आतशी शीशी में भर कर (१ दिन ) बालुकाशुद्धं मूतं समं गन्धं मृतशुल्ब तयोः समम् । अभ्रलोहकयोर्भस्म कान्तभस्म सुवर्णजम् ।।
यन्त्रमें मन्दाग्नि पर पकावें । तदनन्तर उसके स्वांग
शीतल होने पर निकाल कर पीस लें । रजतं च विषं सम्यक् पृथक् मृतसमं भवेत् । हंसपादीरसैमध दिनमेकं वटीकृतम् ॥
मात्रा---४ रत्ती। काचकूप्यां विनिक्षिप्य मृदा संलेपयेदहिः ।
(व्यवहारिक मात्रा-१ रत्ती । ) शुष्का सा वालुकायन्त्रे शनैर्मह मिना पचेत् ॥ इसे अदरक के रस और पीपलके चूर्णके साथ चतुर्गुअमित देयमादकद्रवपिप्पली ।
सेवन करना चाहिये। इसके सेवनसे त्रिदोषज क्षय, क्षयं त्रिदोषज हन्ति सन्निपातांस्त्रयोदश ॥
१३ प्रकारके सन्निपात, आमवात, धनुर्वात, श्रृंख
लावात, आढयवात, पंगुता, कफवात, अग्निमांथ, आमवातं धनुर्वात शृङ्खलावातमेव च ।
कटिवात, शूल, गुल्म, उदावर्त, दुस्तर ग्रहणी, आढयवातं पङ्गुवातं कफवाताग्निमांद्यनुत् ॥
| प्रमेह, उदर रोग, अश्मरी, मूत्राघात, भगंदर, कुष्ठ, कटिवातं सर्वशूलं नाशयेन्नात्र संशयः ।
विद्रधि, श्वास, कास, अजीर्ण, आठ प्रकारके गुल्मशूलमुदावर्त ग्रहणीमतिदुस्तराम् ॥ ।
| ज्वर, कामला, पाण्डु, शिरोरोग और अनुपान प्रमेहमुदरं सर्वामश्मरी मूत्रविग्रहम् । विशेषके साथ देनेसे अन्य समस्त रोग नष्ट भगन्दरं सर्वकुष्ठं विद्रधी महतीं तथा ।। होते हैं। श्वासकासमजीणे च ज्वरमष्टविधं तथा।। जिस प्रकार सूर्यके सम्मुख अंधकार नहीं रह कामलां पाण्डुरोगं च शिरोरोगं च नाशयेत् ॥ सकता इसी प्रकार इस रसके सम्मुख रोग नहीं अनुपानविशेषेण सर्वरोगान् विनाशयेत् । टहर सकते । यथा सूर्योदये नश्येत्तमः सर्वगतं तथा ॥ (८३३१) स्वर्णमाक्षिकद्रावणम् सर्वरोगविनाशाय सर्वेषां स्वर्णभूपतिः ॥
(र. र. स. पू. अ. २) शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गंधक १ भाग, . एरण्डोत्थेन तैलेन गुना क्षौद्रं च टङ्कणम् । ताम्र भरम २ भाग तथा अभ्रक भस्म, लोह भस्म, | मर्दिनं तस्य वापेन सत्वं माक्षिक द्रवेत् ॥ कान्तलोहभस्म, स्वर्ण भस्म, चांदी भस्म और चौंटली (गुंजा), शहद और सुहागा समान शुद्ध बछनाग १-१ भाग ले कर प्रथम पारे गंधक भाग ले कर, सबको एकत्र मिला कर अरण्डीके की कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे । तेलमें खरल करें।
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