Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
पश्चमो भागः
४०३
शीतज्वरे सन्निपाते विरच्यां विषमज्वरे। ले कर सबको एकत्र मिलाकर खरल करें और फिर पीनसे च प्रतिश्याये ज्वरेऽजीर्ण तथैव च ॥ उसमें उसके बराबर शुद्र गन्धक मिलाकर कजली मन्देऽनौ वमने चैव शिरोरोगे च दारुणे। बनावं तथा उसे आतशी शीशी में डालकर बालुकाप्रयोज्यो भिषजा सम्यगरसः स्वच्छन्दभैरवः॥ यन्त्रमें पकायें और फिर उसके स्वांगशीतल होने पथ्यं दध्योदनं दद्याद्वीक्ष्य दोषबलाबलम् ॥
पर रसको निकालकर पीस लें। तदनन्तर उसमें शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक और शुद्ध बछनाग
उसके बराबर सोंठ, मिर्च, पीपल, अरणी, तुलसी, २-२ भाग तथा जायफलका चूर्ण १ भाग ले कर
जिमीकन्द (सूरण), काकडासिंगी, हर्र और शुद्ध कज्जली बनावें और उसमें ३।। भाग पीपलका
बछनाग का समान भाग मिश्रित चूर्ण मिलाकर चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह खरल करें ।
३-३ दिन मुण्डी और निर्गुण्डीके रसमें खरल
करके सुरक्षित रखें । मात्रा-आधी रत्ती।
मात्रा-६ रत्ती । इसे पानके साथ अथवा अदरकके रस या गूमाके रसके साथ देनेसे शीतज्वर, सन्निपात, विसू
इसे अदरकके रसके साथ सेवन करनेसे चिका, विषमज्वर, पीनस, प्रतिश्याय, जीर्ण ज्वर,
समस्त वातरोगों का और विशेषतः वातरक्तका नाश अग्निमांद्य, वमन और दारुण शिरोरोगका नाश
होता है। होता है।
( व्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती ।) पथ्य-दोष और रोगीका बलाबल देखकर (८३२०) स्वच्छन्दभैरवरसः (५) दही भात आदि देना चाहिये।
( रसे. सा. सं. । कासा. ; र. चि. म. । स्त. (८३१९) स्वच्छन्दभैरवरसः (४) ७ ; र. रा. सु. ; र. का. धे. | ग्रहण्य. ; र. (र. र. स. । उ. अ. २१)
चं. ; धन्व. । कासा.) तीक्ष्णाऽयस्कान्तगोदन्तमाक्षिकैर्मदितो रसः। रसमेकं द्विधा गन्धं गन्धतुल्यश्च सैन्धवम् । समांशगन्धकः पक्वो हण्डिकायन्त्रमध्यगः ॥ | ज्वालामुखीरसैः पञ्चदिनानि परिमर्दयेत् ॥ व्योषामिमन्यसुरसाकन्दम्पभयाविषैः। मूषिकायां निरुध्याथ पुटेदात्रौ च मध्यमम् । समैः समं त्र्यहं मुण्डी निर्गुण्डी रसपिण्डितः ॥ सर्व भस्म यदा याति वल्लमेनं प्रयच्छति ।। सेवितः शमयेवातान्नाम्ना स्वच्छन्दभैरवः। ग्रहण्यां सङ्ग्रहण्याञ्च कासे श्वासे विशेषतः। विशेषाद्वातरक्तं च दि वल्लं चाकैर्ददेत् ॥ उग्रासु ज्वरतन्त्रासु निद्रास्वल्पासु योजयेत् ॥
तीक्ष्ण लोहभस्म, चुम्बक भस्म, गोदन्ती भस्म, अन्यरोगेषु तं दद्याद्रसं स्वच्छन्दभैरवम् । वर्णमाक्षिक भस्म और शुद्ध पारद १-१ भाग । तुष्टिं पुष्टिमसौ कुर्यात्सौकुमार्यञ्च कारयेत् ॥
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