Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग भूख लगने पर ईख, द्राक्षा, मिसरी और दही और सेंधानमक २ भाम ले कर सबको एकत्र आदिके साथ पथ्याहार देना चाहिये । मिलाकर खरल करें । जब कजली हो जाय तो
(८३२२) स्वच्छन्दभैरवरसः (७) उसे ५ दिन ज्वालामुखो (कलियारी)के रसमें खरल करें और फिर मूषामें बन्द करके मध्यपुट में फूंक
(र. चि. म. । स्त. ४ ; र. का. धे. । ज्वरा.) दें। तदनन्तर इसके स्वांगशीतल होने पर भस्मको वेदतोला रसो ग्राह्यो गन्धको द्वादशात्र च । निकालकर सुरक्षित रखें।
कृत्वा कज्जलिकामादौ क्षिपेत्ताम्रकटोरिके ॥ मात्रा-२-३ रती।
अष्टतोलाप्रमाणेऽस्मिन् धृत्वा मृतं विशोधितम् ।
सन्धिलेपं विधायाऽथ वालुकायन्त्रके क्षिपेत् ।। इसके सेवन से ग्रहणी रोग, संग्रहणी, विशेषतः |
ऊर्ध्व ढङ्कणिकां दच्या तां मृदा लेपयेत्ततः । कास, श्वास, उग्र ज्वर और निद्राकी कमी आदि ।
अहोरात्रं विधेयः स्याद्वह्निस्तत्र च पारदे ।। रोग नष्ट होते तथा तुष्टि, पुष्टि और सुकुमारताकी
उत्तार्य शीतलं तं च मधुना सम्पदापयेत् । वृद्धि होती है।
श्लेष्मिके च ज्वरे देयस्त्रिगुझो मरिचैः सह ॥ (८३२१) स्वच्छन्दभैरवरसः (६) वातिकेऽथ ज्वरे दधाद्विगुञ्जः पिप्पलीयुनः । ( रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. ; र. का. घे.।।
रोगयोग्यानुपानेन देयः स्वच्छन्दभैरवः ॥
त्रिफलारससंयुक्तः सर्वरोगे प्रयुज्यते ॥ __ ज्वरा. ; रसे. चि. म. । अ. ९)
शुद्ध पारद् ४ तोला और शुद्ध गन्धक १२ ताम्रभस्म विषं हेम्नः शतधा भावितं रसैः ।
तो. ले कर कज्जली बनावें और उसे तांबेकी कटोरीगुञ्जाद सन्निपातादिनवज्वरहरं परम् ।।
में डालकर उस पर ८ तो. शुद्ध पारद रख दें आम्बुशर्करासिन्धुयुतः स्वच्छन्दभैरवः ।
तथा उस पर दूसरी तांबेकी कटोरी ढक कर दोनों के इक्षुद्राक्षासिताश्चापि दधि पथ्यं रुचौ ददेत् ॥ ।
जोड़को अच्छी तरह बन्द कर दें। फिर इस सम्पुटताम्रभस्म और शुद्ध बछनागका चूर्ण समान को बालुकायन्त्रमें रख कर उसके ऊपर ढकना भाग ले कर दोनोंको एकत्र मिलाकर धतूरेके रसकी ढक कर जोड़पर मिट्टीका लेप कर दें और उसके
१०० भावना दें और आधी आधी रत्तीकी गोलियां नीचे २४ घंटे अग्नि जलावें । तदनन्तर उसके : बना लें।
स्वांगशीतल होने पर रसको निकाल कर सुर
क्षित रक्खें । १-१ गोली अदरकके रस, खांड और सेंधा । नमकके साथ देनेसे नवीन सन्निपातादि ज्वरोंका इसे कफज ज्वर में शहद और काली मिर्च के नाश होता है।
चूर्ण के साथ ३ रत्ती की मात्रानुसार देना चाहिये।
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