Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[ सकारादि सौराष्ट्री और फिटकरीमें समान ही गुण होते पिप्पली मधुना सार्धं चैतदगुञ्जाद्वयं भजेत् । हैं इसलिये इनमेंसे किसी एकके अभावमें दूसरी स्थूलदुर्दिनविनाशने मरुत् वस्तु काममें ला सकते हैं।
स्थूलपर्वतविनाशने हरिः । सौराष्ट्रीको ३ दिन तक कांजीमें रखनेसे स्थूलदोपरसशोषणक्षमः वह शुद्ध हो जाती है।
___ स्थूलराजगजकेसरीरसः ॥ __ सौराष्ट्रीको क्षार और अम्ल पदार्थों के साथ
रस सिन्दूर १ भाग, चांदी भस्म २ भाग, खरल करके धमानेसे उसका सत्व निकल आता है। स्वर्ण माक्षिक भस्म ३ भाग, अभ्रक भस्म ४ भाग, यह सत्व धातुवादमें ही काममें आता है, औषधोंमें | ताम्र भस्म ५ भाग, लोह भस्म ६ भाग और व्यवहृत नहीं होता।
स्वर्ण भस्म ७ भाग ले कर सबको एकत्र खरल
करके प्रथम बिजौ र नीबूके रसमें खरल करें और (८३०७) सौवीराजनादिशोधनम्
फिर सात दिन तक अन्य अम्ल बर्गके रसमें (रसे. सा. सं.)
खरल करें । तदनन्तर उसे आतशी शीशीमें भर सौवीरं टङ्कणं शङ्ख ककुष्ठं गैरिकन्तया ।
कर १६ पहर बालुका यन्त्रमें पकावें । इसके
पश्चात् शीशीके स्वांगशीतल होने पर उसमें से एते वराटवच्छोध्या भवेयुर्दोषवर्जिताः ॥
औषधको निकाल कर अदरकके स्वरस, गूमाके सौवीराञ्जन, सुहागा, शंख, कंकुष्ठ और
स्वरस और बड़ी कटेलीके पत्तोंके स्वरस तथा बड़ी गेरुको वराट (कौड़ी) की भांति शुद्ध करनेसे वे |
कटेलीके बीजोंके रसमें १-१ दिन खरल करके दोष-रहित हो जाते हैं।
सुरक्षित रखें। (८३०८) स्थूलराजगजकेसरी रसः मात्रा-२ रत्ती । (र. प्र. सु. । अ. ८)
इसे पीपलके चूर्ण और शहदके साथ सेवन रसेन्द्रं रजतं ताप्यं गगनं ताम्रलोहकम। ।
करमेसे स्थूलताका नाश होता है ।। स्वणे च क्रमद्धानि मर्दयेत्पूरवारिणा ॥ (८३०९) स्थौल्यापकर्षणो रसः अन्येन चाम्लवर्गेण मर्दयेत्सप्तवासरान् ।
(र. प्र. सु. । अ. ८) काचकूप्यां निधायाय पञ्चामाष्टकद्वयम् ॥
सूतबोलमृततालताम्रकं स्वागशीतलतां ज्ञात्वा गृहोयात्तं च मर्दयेत् । आईकस्वरसेनैव द्रोणपुष्पी रसेन च ॥
चाकेदुग्धरसकेनमर्दितम् । बृहत्याः पत्रतोयेन बीजतोयेन वा पुनः ।। १ चांगेरी, लकुच, अम्लवेत, जम्बीरी, ना. प्रत्येक दिनमेकं हि भावनां दापयेत्पाद ॥ । रंगी, अनार, कैथ इत्यादि।
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