Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रलाकरः
[ सकारादि
११-१। माशा तीक्ष्णलोह-भस्म, ताम्र-भस्म और गौरीपाषाण (सोमल-संखिया) दो प्रकारस्वर्णमाक्षिक-भस्म मिलाकर उसमें धतूरा, त्रिफला, का होता है, एक श्वेत और दूसरा रक्त । घृतकुमारी, विधारा, अद्रक, सुगन्धबाला, नागरमोथा, श्वेत सोमल शंखके समान होता है और मण्डूकपर्णी, संभालु, भंगरा, चीता, मकोय, नीम, लाल अनारके दानेके समान । अरण्डमूल और भांग इनका ५-५ तोले स्वरस या श्वेत सोमल कृत्रिम होता है और लाल क्वाथ मिलाकर खरल करें तदनन्तर उसमें ३॥ पर्वतसे निकलता है। माशे त्रिकुटे (सोंठ, मिर्च, पीपल) का चूर्ण मिलाकर दोनों प्रकारके सोमल विष हैं और पारदअच्छी तरह घोटकर चनेके समान गोलियां बना लें। कर्ममें काम आते हैं।
इनमें से ४-४ गोली जीरेके पानी के साथ सोमल पारेको बांधने वाला, स्निग्ध, सर्व दोषमिलाकर देनेसे सन्निपात ज्वर नष्ट होता है। नाशक ( अथवा पारदके दोष दूर करने वाला) अनुपान-पञ्चमूल (बेल, श्योनाक, खम्भारी,
और पारदकी शक्तिको बढ़ाने वाला है । पाढल और अरणी ) का क्वाथ ।
सोमलको कपड़ेकी पोटलीमें बांधकर दोलाप्यास लगे तो शीतल जल देना चाहिये।
यन्त्र विधिसे, एक दिन, चौलाईके काथमें मन्दाग्नि
पर पकानेसे वह शुद्ध हो जाता है । पथ्य-दही भात ।
सोमलको पीस कर कपड़ेकी पोटलीमें बांध (८२९४) सोमलशोधनम् कर दोलायन्त्र विधिसे एक दिन चूनेके पानीमें . ( यो. र. । प्रथम भा.) पकानेसे वह शुद्ध हो जाता है। गौरी पाषाणकः प्रोक्तो द्विविधः श्वेतरक्तकः। (८२९५) सोमानलरसः श्वेतः शमसदृश रक्तो दाडिमाभः प्रकीर्तितः॥
(र. का. धे. । कुष्ठा.) श्वेतः कृत्रिमकः प्रोक्तो रक्तः पर्वतसम्भवः। गोमूत्र कुची बीजं त्रिसप्ताहं विभावयेत । विषरूपधरौ तौ हि रसकर्मणि पूजितौ ॥ त्वग्वज्य शोषितं चूर्ण तुल्यांशा चाभया तथा ॥ रसबन्धकरः स्निग्धो दोषघ्नो रसवीर्यकृत ॥ ततः खदिरवीजोत्यकषाये मर्दयेत्क्षणम् । घननादरसान्विते च मल्लः
ककुष्ठं मृतलोहं च तुल्यांशं मधुमिश्रितम् ॥ परिपाच्यः किल दोलकाहयन्त्रे । ककं सर्वकुष्ठातः खादेत्सोमानलो ह्ययम ॥ भुभवहिरथो दिनं च मन्दः
दो घड़ी तक कांजी या गोदुग्धमें पकानेसे परिदेयः परिजायते स शुद्धः॥ भी सोमल शुद्ध हो जाता है । उल्लीपाषाणसंशुद्धिर्वक्ष्यते शास्त्रसम्मता। इसका सत्व हरताल सत्वकी विधिसे निकाला चूर्णीकृतं पटे बवा शिलाक्षारोदकेन च ॥ जाता है । सोमल वातज और कफज रोगोंमें तथा दोलायन्त्र दिनैकं तु पाचितःशृद्धिमाप्नुयात् ।। शीतमें दिया जाता है ।
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