Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[शकारादि
( ७४४९) शतपुष्पादिलेपः घृतं विदारी च सितोपलांश्च (बृ. नि. र. । वातव्या.)
युख्यात्मदेहं पवने सरक्त। शतपुष्पासुरद दिनेशपयो
सोया, सौंफ, मुलैठी, खरैटीकी जड़, प्रियाल, गदरामसिन्धुभव हरति । कसेरु, विदारीकन्द और मिश्री समान भाग ले कर अपि लेपनतोऽस्थिगतं मरुतं सबको बारीक पीस कर धीमें मिलाकर लेप करनेसे
कटिसन्धिभवं त्रिदिनात्सततम् ॥ वातरक्तका नाश होता है। सोया, देवदोरु, आकका दूध, कूल, हींग, (७४५२) शम्बूकयोगः और सेंधा नमक समान भाग ले कर बारीक
(व. से. । वृद्धय. ; वृ. नि. र. । वृद्ध्य.) चूर्ण बनावें ।
शम्बूकोदरनिहितं गव्यं सप्ताहमातपे सपिः। इसे ( पानीमें पीसकर ) लेप करनेसे तीन स्थितमपहरति कुरण्डं सैन्धवचूर्णान्वितं लेपात्॥ दिनमें अस्थि, कटि, सन्धिगत वायुका नाश
शंखके भीतर गायका घी भरकर उसका मुख होता है।
| बन्द करके धूपमें रख दें और सात दिन पश्चात् (७४५०) शतावर्या दिलेपर
निकाल कर उसमें (उसके बराबर) सेंधानमकका (वृ. मा.। शिरोरोगा.)
चूर्ण मिला लें। शतावरी कृष्णतिलान्मधुकं नीलमुत्पलम् । इसका लेप करनेसे अण्डवृद्धिका नाश
वीं पुनर्नवां चापि लेपं साध्ववचारयेत् ॥ होता है। शीततोयावसेकांश्च क्षीरसेकांश्च शीतलान् ॥ (७४५३ ) शरपुवादियोगः शतावर, काले तिल, मुलैठी, नीलोत्पल, दूर्वा
(वृ. मा. । व्रणशोथा.) और पुनर्नवा समान भाग ले कर सबको (पानीमें) मधयुक्ता शरपुडा सर्वव्रणरोपणी कथिता ॥ पीस कर लेप करनेसे सूर्यावर्तका नाश होता है।
सरफोंके के चूर्णको शहद में मिला कर लेप सूर्यावर्त में शिर पर शीतल जल और शीतल
शीतल | करनेसे समस्त प्रकारके व्रण भर जाते हैं । दूध डालनेसे भी लाभ होता है ।
| (७४५४) शरपुडायोगः (१) (७४५१) शताहादिलेपः
(वै. म. र. । पटल १७) ( व. से. । वातरक्ता. ; वृ. नि. र. । वातरक्ता.) अपच्यर्बुदयोः पूर्व रक्तं हत्वा जलौकसा । उभे शताहे मधुकं बला च
शरपुत्राशिफां लिम्ज्ये ष्ठाम्भोभिः सुपेषिताम् प्रियालकश्चापि कशेरुकच।
अपची और अर्बुद पर प्रथम जोंक लगवा
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