Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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गुग्मुलुपकरणम् ] पञ्चमो भागः
२३३ गुल्म, उदरशूल और कष्टसाध्य आमवातका नाश | शोथान्त्रद्धिशूलानि गुदजानि विनाशयेत् । होता है। इसे दीर्घकाल तक निरन्तर सेवन कर- | मेदःकफामसङ्घातं व्याधिवारण दर्पहा ॥ नेसे जरा और पलितका नाश होता है । यह अग्नि सिंहनाद इति ख्यातो योगोऽयममृतोपमः ॥ वर्द्धक भी है।
४० तोले शुद्ध गूगलको कपड़े की पोटली में पथ्य-घी, तैल और ( मांसाहारियांके
बांध लें फिर एक कढ़ाईमें २-२ सेर हर, बहेड़े लिये ) बसा युक्त साठी तथा शाली चावलोंका
और आमलेका चूर्ण तथा ४८ सेर पानी डाल कर
उसमें यह पोटली डाल दें और मन्दाग्निपर पकावें। भात ।
जब १२ सेर पानी रह जाय तो उसे छान लें (७९२४) सिंहनादगुग्गुलुः (४) (वृहद्) और पोटलीमें जो गुग्गुलु बचा हो उसे १ सेर ( भै. र. ; धन्व. । आमवाता. ; र. र. , वृ.
सरसेके तेलमें मिला कर घोट लें । तदनन्तर यह
कोथ और तेलमें घुटा हुवा गूगल एकत्र मिलाकर नि. र. । आमवाता. ; यो. त. । त. ४२ ;
पुनः मन्दाग्नि पर पकायें और गाढ़ा हो जाने पर भा. प्र.। वातरक्ता.)
उसमें सेांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, पिट्टितां गुग्गुलोर्माणी कटुतैलपलाष्टकम् ।। नागरमोथा, बायबिडंग, देवदारु, ( पाटान्तरके प्रत्येक त्रिफलामस्थौ सार्द्धद्रोणे जले पचेत ॥ अनुसार आमला ), गिलोय, चीतामूल, निसोत. पादशेषश्च पूतश्च पुनरेतद्विमिश्रयेत् ।
दन्तीमूल, चव (पाठान्तरके अनुसार बच ), सूरण त्रिकटुत्रिफलामुस्तविडङ्गामरदारुकम् ॥
(जिमीकन्द) और मानकन्द; इनका चूर्ण २॥२॥ गुडूच्यग्नित्रिवृदन्ती चवी श्रणमाणकम् ।
तोले तथा २॥२॥ तोले शुद्ध पारद और गन्धककी पारदं गन्धकश्चैव प्रत्येकं शुक्तिसम्मितम् ॥ कजली एवं १ हजार शुद्ध जमालगोटोंका चूर्ण सहस्रं कानकफलं सिद्धे सञ्चूयं निक्षिपेत् । ( पाठान्तरके अनुसार २॥ तोले कस्तूरी भी) ततो रक्तिद्वयं जगवा पिवेत्तप्तजलादिकम् ॥
मिला कर सबको एकजीव करके सुरक्षित रक्खें । अनिश्च कुरुते दीप्तं बडवानलसभिभम् ।।
मात्रा-२ रत्ती । अनुपान- उष्ण धातुद्धि वयोवृद्धिं बलं सुविपुलं तथा ॥
जलादि। आमवात शिरोवातं सन्धिवातं सुदारुणम् । __इसके सेवनसे अग्नि दीत तथा धातु, बल और जानुजङ्घाश्रितं वातं सकटीग्रहमेव च ॥ आयुकी वृद्धि होती है । यह गूगल आमवात, अश्मरी मूत्रकृच्छञ्च भग्नश्च तिमिरोदरे । शिरोगत वायु, दारुण सन्धिवात, जानु और जंघागत अम्लपित्तं तथा कुष्ठं प्रमेहं गुदनिर्गमम् ॥ वायु, कटिग्रह, अश्मरि, मूत्रकृच्छ, भन्नरोग, तिमिर, कासं पञ्चविधं श्वास क्षयश्च विषमज्वरम् ।। उदर रोग, अम्लपित्त, कुष्ट, प्रमेह, गुदभ्रंश (कांच प्लीहानं श्लीपदं गुल्मं पाण्डुरोगं सकामलम् ॥' निकलना), ५ प्रकारके कास, स्वास, क्षय, विषम
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