Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
पञ्चमो भागः
(८१२६) सञ्जीवनो रसः (१) फल, लोह भस्म, हंसपादी और कंकुष्ट १-१ भाग (र. रा. सु. । ज्वरा.)
ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और
फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सब रसेन गन्धं द्विगुणं विमर्थ
को ३ दिन अदरकके रसमें खरल करें और फिर रसप्रमाणानि भवन्त्यमृनि ।
कपडमिट्टी की हुई आतशी शीशीमें भर कर शिलानलव्योषविपाभ्रकाणि
उसमें ४५ तोले जम्बीरी नीबूका रस, संभालुका भृङ्गं विषं माक्षिकतन्दुलीयाः ।।
रस और जयन्तीका रस (हरेकका रस १५ तोले) कुम्भीभमुण्डीमृततालकश्च ।
एवं ५ तोले चूकेका रस भर कर उसके मुखको सताम्रशाकोयमरालपादः ।
बन्द कर दें और उसे बालुका यन्त्रमें रख कर १४ कष्ठकं चेति दिनत्रयं तदा
दिन पाक करें। ___ह्यााम्बुना सर्वमथो विमर्यः॥ निवेश्य कूप्यां रसमत्र देयो
तदनन्तर शीशीके स्वांगशीतल होने पर जम्बीरनिर्गुण्डिजयाभिधानां।।
उसमेंसे औषधको निकाल कर उसे अदरकके रसमें नवप्रमाणानि रसः पलानि
खरल करके सुखा कर सुरक्षित रखें। चाङ्गेरिकायाः स्वरसः पलैकम् ॥
मात्रा-२ रत्ती। ततः सुबध्वा सिकताख्ययन्त्रे
अनुपान-अदरकका रस । चर्तुदशाहानि पचेत्सुशीते । तद्भावयेदाकजेन सूतो
यह रस सन्निपात ज्वर में विशेष उपयोगी है। ___ मृताख्य सञ्जीवन इत्यपूर्वः ॥ इस पर पथ्यादि “प्राणेश रस" के समान वल्लोस्य सर्वान् जयति प्रयुक्तो देना चाहिये। गदान् सदाद्रवयुक्मभावान् ।
___ (८१२७) सञ्जीवनो रसः (२) प्राणेशवत्सर्वमिह प्रयोज्यं
ह्ययं त्रिदोषे सविशेष वीर्यः।। (र. रा. सु. । प्रमेहा. ; र. र. स. । उ. अ. १७) शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग | पलमा
पलमात्र रस शुद्धं वरनागसमन्वितम् । और शुद्ध मनसिल, चौतामूलका चूर्ण, सांठ, मिर्च निक्षिप्य पातनायन्त्रे त्रिंशद्वाराणि पातयेत् ॥ और पीपलका चूर्ण, शुद्ध बछनागका चूर्ण, अभ्रक समाहरेद्रसं सम्यक पातनायन्त्रके मृतम् । भस्म, दालचीनी, शुद्ध संखिया, स्वर्णमाक्षिक- मृत रसं क्षिपेत्तुल्यं भूपालावर्तभस्मकम् ॥ भस्म, चौलाई की जड़, शुद्ध जमालगोटा, नागकेसर, निरुत्थं त्रपुभस्मापि निक्षिपेदष्टमांशतः । गोरखमुण्डी, हरताल भस्म, ताम्र भस्म, सागोनका ततो निम्बदलद्रावैस्त्रिंशद्वारं हि भावयेत् ।।
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