Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३१२
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[ सकारादि
(८१४५) सन्निपातान्तकरसः (२) । (८१४६)सन्निपातारि रसः (र. का. धे. । सन्निपाता.)
(वृ. यो. त. । त. ५९) मृतकान्ताभ्रवक्रान्तं ताप्यं नालं समं समम् । मछितश्च रसो मोभयवानरमत्रतः॥
भागौ पारदगन्धयोरमलयोर्देयास्त्रयस्यूपणाराजक्षफलव्योषकुष्माण्डरसपिण्डितः।
देकश्चोज्ज्वलटङ्कणादहनतस्तीबोत्तमाभृङ्गतः । अभिन्यासज्वरं हन्यात्क्षौर्षिकभक्षणात् ।। नागाद्वै चरणोऽहिफेनत इदं स चूर्ण्य भृङ्गद्रवे कान्ताभावे मृतं तीक्ष्णं सन्निपातान्तको रसः॥ स्थाप्यंसप्त दिनान्यथैकमखिलं ज़ेपालनीरेऽपि च
___ कान्तलोह भस्म, अभ्रक भस्म, वैक्रान्त- रुद्रेण ज्वरमर्दितं जगदिदं दृष्ट्वा रसो निर्मितः भस्म, स्वर्णमाक्षिक-भस्म, शुद्ध हरताल और सेव्यो वल्लमितः क्षणादिह नृणामुग्रां ज्वराति मूछित पारद ( रससिन्दूर ) समान भाग लेकर
जयेत् । सबको एकत्र मिलाकर खसके काथ, बन्दरके मूत्र, सन्तापे शिशिरो विधिः समुदितः पथ्ये न अमलतासके फलके गूदेके पानी, त्रिकुटेके काथ
शाल्योदनम् और पेठे (भूरे कुम्हड़े ) के रसकी पृथक् पृथक् | दना शर्करयाऽथ दोषवशतो देश सात्म्येन च ॥ १-१ भावना देकर १-१ माशेकी गोलियां
शुद्ध पारद और गन्धक २-२ भाग, सेट, बना लें।
मिर्च और पीपलका चूर्ण १-१ भाग, सुहागेकी (व्यवहारिक मात्रा-१ रत्ती । )
खील १ भाग, तथा चीतामूलका चूर्ण, तीक्ष्ण लोह इसे शहदके साथ देनेसे अभिन्यास सन्निपात
भस्म, शुद्ध मनसिल और भंगरेका चूर्ण १-१ नष्ट होता है।
भाग एवं सीसा-भस्म और अफीम चौथाई चौथाई नोट-यदि कान्तलोह-भस्म न हो तो तीक्ष्ण
भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें लोहभस्म डालनी चाहिये।
और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सन्निपातानलरसः ।
सबको भंगरेके रसमें डाल दें और सात दिन तक .. (र. रा. सु.। सन्निपाता.)
भीगो रक्खें तदनन्तर सुखा कर एक दिन जमालसन्निपातान्तक रस प्र. सं. ८१४४ देखिये।
गोटेके पानी ( दन्तीमूलके काथ ) की भावना दें उससे इसमें इतना अन्तर है ।
और २-२ रत्तीकी गोलियां बना लें । (१) खपरिया और हिंगुल २-२ भाग तथा अम्लबेत १ भाग है।
____ भगवान रुद्रने संसारको ज्वराक्रान्त देख (२) जयन्ती, पीपल, गजपीपल और भंग- कर इस रसकी रचना की थी। रेके स्थानमें केवल करवीरकी भावना है।
इसके प्रभावसे तीब्र ज्वर भी शीघ ही नष्ट हो (३) भावनाओंकी संख्या सात सात है। जाता है।
For Private And Personal Use Only