Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
३६६
गोलकं ततः कृत्वा पक्वं निचुलवारिणा । ततस्तं पुटपाकेन स्तम्भयित्वा प्रयत्नतः ॥ वाह्ये चास्यापि लिप्त्वा च वक्त्रस्था
गुटकोत्तमा । स्तम्भयेच्छस्त्रसङ्घातं विषरोगांश्च नाशयेत् || अब्देनैकेन वक्त्रस्थावयः स्तम्भं करोति च । बलीपतिहन्त्री गुटिका सुरसुन्दरी ॥
अभ्रक, स्वर्णमाक्षिक, हीरा, कान्त लोह, स्वर्ण और शुद्ध पारद समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर खरल करें। जब सब चीजें मिल कर एकजीव हो जाएं तो उसकी गोली बना कर हिज्जल ( या जलवेत ) के रसमें पकावें और फिर उसे शराव - सम्पुट में बन्द करके पका कर दृढ़ कर लें ।
यदि इसे १ वर्ष तक मुखमें धारण किया जाय तो आयु स्थिर हो जाती है तथा वलीपलितका नाश होता है ।
(८२४५) सुरसुन्दरीवटिका
( र. र. रसा. खं । उप. ३ )
स्वर्णमेकं कान्तमेकं पञ्चतारं द्वि पारदम् । त्रिभागं व्योमसत्त्वं स्यात् षड्भागं शुल्वचूर्णकम् ॥ सर्वमेतत्कृतं सूक्ष्मं तप्तखल्वे दिनत्रयम् । मर्दयेदम्लवर्गेण दोलायन्त्रे सकाञ्जिके ॥
[ सकारादि
गोलं त्रिदिनं पच्याद्गुटिका सुरसुन्दरी । जायते धारिता व वर्षान्मृत्युजरापहा ॥ भूतावटमूलं च कर्ष क्षीरैः पिवेदनु ॥
इसके ऊपर (घृतादि) किसी योग्य वस्तुका लेप करके मुखमें रखनेसे शस्त्रसंघात रुक जाता है |चाहिये । और विष नष्ट हो जाते हैं ।
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स्वर्ण १ भाग, कान्तलोह १ भाग, चांदी ५ भाग, शुद्ध पारद २ भाग, अभ्रक - सत्व ३ भाग और ताम्र ६ भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर खरल करें और सबके मिल जाने पर तप्त खरल में ३ दिन तक अम्लवर्गके साथ खरल करें । तदनन्तर उसकी गोली बना कर कपड़े में बांध कर दोलायन्त्रविधिसे ३ दिन कांजीमें वेदित करें ।
इसे १ वर्ष तक मुखमें धारण करनेसे जरा और अकाल-मृत्यु नहीं आती ।
इसके प्रयोग कालमें नित्य प्रति १ तोला भूतारवट मूल (3) को दूधमें पीस कर पीना
(८२४६) सुरूपो रसः (र. का. . । ज्वरो . )
रसं गन्धकं त्र्युषणं नागपुष्पं
वरायुक्तमादौ वराजीवनेन । सुम नागैर्भावितं भृङ्गतोयैर्वटी
मुद्गमाना विधेया भिषग्भिः ॥ जयेदग्निमान्धं कुरङ्गाश्वतापं
कफं वातमुन्मत्तभावं क्षणेन । समस्तेन्दुर वृन्दमक्षिम वाह
उक्त रसान्धौ सुरूपेति नामा ॥
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