Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५४ भारत-भैषज्यमलाकरः
[ सकारादि (८२२१) सिद्धयोगेश्वरः अरण्डके पोंसे लपेट दें तथा अनाजके ढेर में
दबा दें । ३ दिन पश्चात् गोलेको निकाल कर ( रसे. चि. म.। अ. ८)
खरल कर लें, वह वारितर हो जायगा । तत्पश्चात् शुद्धसूतं द्विधा गन्धं खल्वे घृष्ट्वा तु कजलीम् । | उसे घीकुमार, भंगरा, पियाबांसा; मकोय, पुनर्नवा, तयो रसं कान्तलोहमभावे तस्य तीक्ष्णकम् ॥ नील, गोरखमुण्डी, संभालु, सहदेवी, शतावर, वेडितं देवदेवेशि मर्दितं कन्यकाद्रवैः। . | अम्लपर्णी, गोखरु, कोचकी जड़ और बड़के यामद्वयं ततः पश्चात् तद्गोलं ताम्रसम्पुटे । अंकुर-इनके स्वरस तथा त्रिकुटा, त्रिफला और
आच्छाधरण्डपत्रैस्तु धान्यराशौ निधापयेत् ।। बाबची-इनके काथकी पृथक् पृथक सात सात त्रिदिनान्ते समुद्धत्य पिष्टं वारितरं भवेत् ॥ भावना दें । तत्पश्चात् उसमें उसके बराबर कुमारी भृङ्गकोरण्टौ काकमाची पुनर्नवा। निम्नलिखित चूर्ण मिला कर शहदके साथ सरल नीली मुण्डी च निर्गुण्डी सहदेवी शतावरी ॥ कर लें। अम्लपर्णी गोक्षुरकं कच्छमूलं वटाङ्करम् । चूर्ण-हर्र, बहेड़ा, आमला, सांठ, मिर्च, एतेषां भावयेद्रावैः सप्तवारान पृथक पृथक् ॥ | पीपल, चीतामूल, सेठ, छोटी इलायची, जायफल अषणत्रिफलासोमराजीनां च कपायकैः। और लौंग समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । शुद्धेऽस्मिन् तोलितं चूर्ण सममेकादशाभिधम् ॥ इसे रात्रिके समय खा कर ऊपरसे गोदुग्ध बराव्योषाग्निविश्वैलाजातीफललवङ्गकम् । पीना चाहिये । यदि दूध काली गायका हो तो संयोज्य मधुनालोड्य विमयेदं भजेत्सदा ॥ और भी उत्तम है। रात्रौ पिवेद्गवां क्षीरं कृष्णानां च विशेषतः।
इसे एक वर्ष तक सेवन करनेसे वृद्धावस्था सम्वत्सराजरामृत्युरोगजालं निवारयेत् ॥
और अकाल मृत्यु नहीं आती । यह अत्यन्त वीर्यवीर्यवृद्धिकरं श्रेष्ठं रामाशतमुखपदम् ।
वर्द्धक और स्तम्भक है । इसे सेवन करने वाला तावन्न च्यवते वीये यावदम्लंन सेवते ॥
पुरुप जब तक अम्ल पदार्थ न खाएगा मैथुनके दीपनं कान्तिदं पुष्टितुष्टिकृत्सेविनां सदा।।
समय उसका वीर्यपात न होगा चाहे वह १०० मुगुप्तः कथितः मृतः सिद्धयोगेश्वराभिधः ॥
बार भी स्त्रीसमागम क्यों न करे । ... १ भाग शुद्ध पारद और २ भाग शुद्ध गन्धक
यह अग्निदीपक, कान्तिवर्द्धक और पौष्टिक है । को एकत्र मिला कर कजली बनावें । तदनन्तर
(८२२२) सिद्धवटी उसमें ३ भाग कान्तलोह-भस्म और यह न मिले तो ती लोह-भस्म मिला कर २ पहर घृत- ( वृ. नि. र. । सन्निपाता.) कुमारीके ग्समें खरत करें और फिर उसका एक | शुद्धसूतं तथा गन्धं काकाण्डं सैन्धवं समम् । गोला बना कर उसे ताम्रसम्पुटम बन्द करके | सद्यो बालस्य विष्ठांच द्रवैाम्या विमर्दयेत् ।।
For Private And Personal Use Only