Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ]
पञ्चमी भागः
३८९
सिन्दूर उष्ण है तथा विसर्प, कुष्ठ, कण्डू और | चन्दन और चव- इनका चूर्ण समान भाग ले कर । सबको एकत्र मिला कर खरल करें ।
विषको नष्ट करता है । भग्न अस्थिको जोड़ देता है और व्रणको शुद्ध करके भर देता है ।
इसे शहद में मिला कर सेवन करने से बच्चोंका पश्चाद्रुज' नामक रोग नष्ट होता है ।
मात्रा - १ रत्ती ।
सिन्दूरको दूध और जम्बीरी नीबूके रसमें घोट कर सुखा लेनेसे वह शुद्ध हो जाता है ।
(८२३०) सिन्दूरादिवटी ( धन्व. | वाजीकरणा . ) सिन्दूरं कनकबीजं विजयाक्षुरबीजकैः । जातीफलं जातिपत्री कटुशिग्रुमफेनकम् ॥
अथवा सिन्दूरको नीबूके रस और चावलोंके, पानीमें पृथक् पृथक् १-१ दिन घोट घोट कर समुद्रशोषसंयुक्तं लवङ्गं च तथैव च । धूपमें सुखा लेनेसे वह शुद्ध हो जाता है । भावयेद् विजयाक्वाथैश्छायाशुष्क वटीं कृताम् ॥ स्वादेच्च रक्तिकां नित्यं शुक्रस्तम्भः प्रजायते ||
जो सिन्दूर रंगमें सुन्दर हो; अग्नि सहन कर सकता हो; स्निग्ध, सूक्ष्म, स्वच्छ, भारी और कोमल हो तथा सोनेकी खानसे निकला हो; वह श्रेष्ठ होता है ।
(८२२९) सिन्दूरादिलेहः ( र. र. । बालरोगा. )
सिन्दूरानलकुष्ठमुस्तपरिचैः शृङ्गीवटस्याग्रजैः । पाठागन्धककाचटङ्गणविपाविश्वौषधीकट्फलैः ॥
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लेहः क्षौद्रविनिर्मितो हरति वै पश्चादुजं
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सिन्दूर, धतूरे के शुद्ध बीज, भांग, तालमखाना, जायफल, जावित्री, सांठ, मिर्च, पीपल, सइंजनेके बीज, अफीम, समुद्रशोष और लौंग; सबका समान भाग चूर्ण ले कर एकत्र मिला कर कुची सर्जककोलबीज कुनटीबिल्वेन्द्रलोभैस्तथा । भांग काथमें खरल करें और १–१ रत्तीकी restriयुगैः सचन्दनयुतैः सश्रेयसी
गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें 1
चूर्णितैः ॥
दुस्तरम् ॥ रससिन्दूर, चीतामूल, कूठ, नागरमोथा, काली मिर्च, काकड़ासिंगी, बड़के अंकुर, पाठा, शुद्ध गन्धक, काच लवण, सुहागेकी खील, शुद्ध बछनाग, सोंठ, कायफल, बाबची, राल, बेरकी गिरी, शुद्ध मनसिल, बेलगिरी, इन्द्रजौ, लोध, धानकी खील, स्याह और सफेद जीरा, सफेद
इन्हें खानेसे वीर्यस्तम्भन होता है ।
( मात्रा - १ गोली। स्त्री समागमसे १ घंटा पहले दूधके साथ खावें । )
१ बच्चोंके मलमार्गमें होने वाले लाल रंगके एक विशेष प्रकारके व्रणको " पश्चाद्रुर्ज " कहते हैं । इसमें बच्चेको हरे, पीले दस्त आने लगते हैं और वह सूखने लगता है । यह रोग स्तन्यविकारसे होता है ।
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