Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[सकारादि
७ भाग शुद्ध जमालगोटा मिला कर रुद्राक्षके (८२३७) सुधानिधिरसः (२) क्वाथकी ३ भावना दें और फिर उसमें १-१ भाग (रसे. सा. सं.: र. रा. सु. ; र.चं. ; धन्व. । अकरकरा, बच, भरंगो, पीपल, मिर्च, सोंठ, सफेद
अरोचका.) जीरा, काला जीरा और लौंग--इनका चूर्ण मिला फर धतूरेके पत्तोंके रसको २७ भावना दे कर १-१
रसगन्धौ समौ शुद्धौ दन्तीक्वाथेन भावयेत् । रत्तीकी गोलियां बना लें और छायामें सुखाकर
जम्बीरस्य रसेनैव आर्द्रकस्य रसेन च ॥ सुरक्षित रक्खें ।
मातुलुङ्गस्य तोयेन तस्य मजरसेन च ।
पश्चाद्विश्चोष्यान्सर्वास्तान्टङ्कणञ्चोपचारयेत् ।। इसे रोगोचित अनुपानके साथ देनेसे साधा
'देवपुष्पं वाणमितं रसपादं मृतामृतम् । रणतः समस्त रोग और विशेषतः समस्त प्रकारके
मापमात्रश्च तत्सर्व नागरेण गुडेन वा ॥ ज्वरोंका नाश होता है।
। सर्वारोचकशूलार्तिसामवातं सुदारुणम् । (८२३६) सुधानिधिरसः (१) । विसूचीश्चानिमान्धश्च भक्तद्वेषश्च दारुणम् ।। ( भै. र. । रक्तपित्ता.)
रसोयं वारयत्याशु केशरी करिणं यथा ॥ मृतं गन्ध माक्षिकं लौहचूर्ण
शुद्ध पारद और गन्धक १-१ भाग ले कर सर्व घृष्टं त्रैफलेनोदकेन ।
| कज्जली बनावें और उसे दन्तीमूलके क्वाथ, मूपामध्ये भूधरे तत्पुटित्वा
जम्बीरी नीबूके रस, अदरकके रस, बिजौरे नीबूके दद्याद्गुञ्जां त्रैफलेनोदकेन ॥
रस और बिजौ रे नीबूकी मज्जाके रस को १-१ लौहे पात्रे गोपयः पानयित्वा
भावना देकर उसमें ५-५ भाग सुहागेकी खील रात्रौ दद्याद्रक्तपित्तप्रशान्त्यै ॥ ! और लोंगका चूर्ण तथा पारदसे चौथाई मृत
। बछनाग* मिलाकर खरल करें। शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण माक्षिक-भस्म और लोह-भस्म समान भाग ले कर कञ्जली
मात्रा-१ माश। बनावें और फिर उसे त्रिफलाके काथमें खग्ल करके, इसे सोंटके चूर्णके साथ या गुड़के साथ मूषामें बन्द करके भृधरपुटमें पकावें । | सेवन करनेसे सब प्रकारको अरुचि, शूल, कष्टसाध्य मात्रा–१ रत्ती !
आमवात, विमृचिका, अग्निमांद्य और भक्तद्वेष (भोजन ___ इसे त्रिफलेके क्कायके साथ सेवन करनेसे
पर अश्रद्धा) आदि रोगोंका शीघ्र ही नाश हो
जाता है। रक्तपित्त शान्त होता है।
इस पर रात्रिके समय लोहपात्रमें गोदुग्ध * वकारादि रस-प्रकरणमें 'विषमारणम्' पका कर पीना चाहिये।
देखिये।
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