Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
उपरोक्त पिष्टीको निकाल लें और उसे १-१ दिन | इसे १ मास तक सेवन करनेसे साध्यासाध्य भंगरेके रस, चन्दनके काथमें पीस कर निकाले हुवे | हर प्रकारके अर्शका नाश हो जाता है और कचनारकी जड़के रस, स्नुही (थूहर-सेंड ) के | दारुण गुदपीड़ा इसके सेवनसे शीघ्र ही नष्ट हो दूध और आकके दूधमें एक एक दिन खरल करके जाती है। सबका एक गोला बनावें और उसे शराव-सम्पुटमें इसे अर्श रोगमें "बाहुशाल गुड़" के बन्द करके चार कण्डोंकी अग्निमें फूंक दें। जब साथ सेवन करना चाहिये । तक सम्पूर्ण गन्धक न जल जाए इसी प्रकार उक्त
(८२०४) सर्वेश्वररसः (१०) चारों चीजोंमें घोट घोट कर पुट देते रहे ।।
(र. रा. सु. ; वृ. यो. त. । त. १०३) तत्पश्चात् उसमें ३॥-३॥ तोले सफेद अभ्रककी भस्म, ताम्र-भस्म, पीली कौडीकी भस्म | ताप्यष्टकणहेमताररसकं गन्धं यथाभागिकं और शंख-भस्म मिला कर १-१ दिन स्नुही तानं विद्रुमशुक्तिजं शिखरिज द्विघ्नं तथा भागतः। (थूहर-सेंड ) के दूध और आकके दूधमें खरल | वायोहिरसेन्द्रभूतिगगनं वैक्रान्तकान्तं त्रिशः करके सबका एक गोला बनावें और उसे शराव- तत्सम्म विभावयेत्रिदिवसं यष्टी त्रिजाताम्बुभिः। सम्पुटमें बन्द करके पुट में फूंक दें तथा स्वांग- मुस्तोशीरवराषामृतसठीकन्याविदारीवरी-- शीतल होने पर निकाल कर पीस लें। नीरैर्गोपयसेक्षुरैश्च मुसलीगोलं पचेद्यामकम् । इसे ३२ काली मिरचोंके चूर्ण और घीके साथ
मन्दानौ च गृगावत्पुनरसौ भाव्यस्ततो भावने सेवन करना चाहिये।
द्वे कस्तूरिमृगायोर्मधुकणायुक्तोऽस्य वल्लो
जयेत् ॥ __ मात्रा-९ रत्ती ( व्यवहारिक मात्रा
मेहा ग्रहणीज्वरोदरपरुद्वयाधि रुजं कामला १ रत्ती।)
पाण्डूकुष्ठभगन्दरं ज्वरगणं कृच्छं च शुक्रक्षयम् ॥ ___ यह रस प्रमेह, वातज गुल्म, पित्तज गुल्म,
स्वर्णमाक्षिक-भस्म, सुहागा, स्वर्ण-भस्म, मलावरोध, अग्निमांद्य, शूल, कामशक्तिकी कमी,
चांदी भस्म, खपरिया और शुद्ध गन्धक १-१ बलहानि, श्लेमरोग, वातरोग, अजीर्ण और
भाग; ताम्र-भस्म, प्रवाल-भस्म, मोती-भस्म ज्वरको नष्ट करता है।
और अपामार्गका क्षार २-२ भाग एवं बंग-भस्म, ___ इसे अजीर्णमें काली मिरचोंके चूर्ण आदिके लोह-भस्म, नाग-भस्म, पारद-भस्म, अभ्रकसाथ और ज्वरमें उष्ण जलके साथ देना | भस्म, वैकान्त-भस्म और कान्तलोह-भस्म ३-३ चाहिये।
भाग ले कर सबको एकत्र खरल करें और फिर पथ्यापथ्य-तैल क्षारादि रहित मधुर रस- | मुलैठोके क्वाथ, त्रिजात (दालचीनी, इलायची युक्त भोजन हितकारी है।
और तेजपात ) के क्वाथ, नागरमोथेके क्वाथ,
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