Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
रसप्रकरणम् ]
वलयमित मात्रां ददीतार्द्रकनीरतः । सामज्वरे प्रयुक्तोऽयं रेचयेत्क्षणमात्रतः ॥ गोत सहितं पथ्यं दद्याद्यामद्वयादनु । वरात्रिश्वगुडूचिभिः पाचनं प्राक्प्रदापयेत् ॥ चणककाथसहितं दद्याद्वा शालिभक्तकम् ॥
6-67
पञ्चमो भागः
शुद्ध पारद और गन्धक १ - १ भाग, सुहागेकी खील ३ भाग, त्रिफलेका चूर्ण ४ भाग, जवाखार ३ भाग, शुद्ध हिंगुल २ भाग, शुद्ध जमालगोटा १२ भाग, त्रिकुटेका चूर्ण ७ भाग, चोरक ३ भाग नलिका ३ भाग और निसोत ३ भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर अमलतासकी जड़ काथकी धूप में ७ भावना दें और फिर इसी प्रकार थूहर (स्नुही - सेंड) के दूध, अद्रक के रस, जया रस, चीतामूलके काथ और भंगरेके रस की भावना दें । तदनन्तर उसका १ गोला बनाकर उसे पानोंमें लपेटकर भूधरपुट में स्वेदित करें और फिर उसके स्वांगशीतल होने पर निकाल कर पानों समेत पीस लें ।
मात्रा—६ रत्ती
मात्रा
|
इसे सेवन करने से शीघ्र ही विरेचन हो कर सामञ्वर नष्ट हो जाता है । इसे सेवन करनेसे पहिले ज्वरपाचनके लिये त्रिफला, सोंठ और गिलोयका क्वाथ पिलाना चाहिये ।
पथ्य - औषध खानेके दो पहर पश्चात् गायके तकके साथ या चनेके काथके साथ शाली चावलोंका भात खिलाना चाहिये ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३४७
(८२०७) सामुद्रशुक्तिक्षारादियोगः (ग. नि. । उदरा. ३२ ) सामुद्रशुक्तिकाक्षा यवक्षारः ससैन्धवः । गोदना सम्प्रयुज्येत सर्वोदरविनाशनः ॥
मोतीकी सीपकी भस्म, जवाखार और सेंधा नमक का चूर्ण समान भाग लेकर सबको एकत्र खरल करके रक्खें ।
इसे गाय दही साथ सेवन करने से समस्त प्रकार के उदर रोग नष्ट होते हैं ।
( मात्रा - ४-६ रत्ती । )
सामुद्रं सैन्धवं क्षारो रुचकं रोमकं विडम् । दन्ती लोहरज: कि त्रिवृत्रणकं समम् ॥ afariyar मन्दपावकपाचितम् ।
अनुपान —— अदरक का रस. ( व्यवहारिक तद्यथाग्निवलं चूर्ण पिवेदुष्णेन वारिणा ॥
- २ - ३ रत्ती )
(८२०८) सामुद्राचं चूर्णम्
;
( वृ. मा. ; र. र. व. से. । परिणामशूला. ; भै. र. र. का. घे. ; यो. र. । शूला. ; च. द. | परि. शृला. २७ ; ग. नि. । चूर्णा. ३; बृ. यो. त. । तं ९५ )
जीर्ण जीर्णे च भुञ्जीत माषादिघृतभोजनम् । नाभिशूलं हरेन्नूनं गुल्मप्लीहकृतं च यत् ॥ विद्रध्यष्ठीलिकं हन्ति कफवातोद्भवं तथा । शूलानामपि सर्वेषामौषधं नास्त्यतः परम् ॥ परिणामसमुत्थस्य विशेषेणान्तकं मतम् ॥
For Private And Personal Use Only
समुद्र लवण, सेंधा नमक, जवाखार, संचल ( काला नमक ), रोमक लवण, विड लवण, दन्तीमूल, लोह - भस्म, मण्डूर भस्म, निसोत और