Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
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पञ्चमी भागः
(८१२२) सङ्कोचरस :
( रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. । कुष्ठा. ; रसे. चि. म. । अ. ९ )
मृतताम्राभ्रकं तुल्यं तयोः सूतञ्चतुर्गुणम् । शुद्धं तन्मयेत्खले गोलकं कारयेत्ततः ॥ त्रिभिस्तुल्यं शुद्धगन्धं लौहपात्रे क्षणं पचेत् । तन्मध्ये गोलकं पाच्यं यावज्जीर्णन्तु गन्धकम् ॥ एतन्मृद्वग्रिना तावत्समुद्धत्य विचूर्णयेत् । गुग्गुलुर्निम्बपञ्चाङ्गं त्रिफला चामृता विषम् || पटोलं खादिरं सारं व्याधिधातं समं समम् । चूर्णितं मधुना लेह्यं निष्कमौदुम्बरापहम् ॥ रसः सङ्कोचनामायं कुष्ठे परमदुर्लभः ||
ताम्र भस्म और अभ्रक भस्म १-१ भाग और शुद्ध पारद ८ भाग ले कर तीनों को एकत्र खरल करें। जब सब चीजें अच्छी तरह मिल जाएं तो सबका एक गोला बना लें । तदनन्तर १० भाग शुद्ध गंधकको कढ़ाई में पिघला कर उसमें वह गोला रख दें और मन्दाग्नि पर पकावें ( गन्धक में आग न लग जाय इस बात का ध्यान रक्खें ) । जब सम्पूर्ण गन्धक जीर्ण हो जाए तो कढ़ाईको अग्निसे नीचे उतार कर ठंडा कर लें और
raat are arh बारीक करें | तत्पश्चात् उसमें गूगल, नीमका पंचाङ्ग, हर्र, बहेड़ा, आमला, गिलोय, शुद्ध बछनाग, पटोल, खैरसार और अमलतासकी छाल; इनका एक एक भाग चूर्ण मिला कर अच्छी तरह खरल करके रक्खें ।
मात्रा - ४ माशे । (व्यवहारिक मात्रा - २ रती । )
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३०१
इसे शहद में मिलाकर सेवन करनेसे उदुम्बर
कुष्ठ नष्ट होता है ।
सङ्ग्रहणीकपाटरसः
१५९८
प्र.
सं.
वृहद् ) " देखिये |
" ग्रहणीकपाटरसः
(८१२३) सङ्ग्रहणीरसः
( र. का. घे. 1 सङ्ग्रहणी. ) रसं गन्धकं नीलकं ताम्रमभ्रं
शिलामाक्षिकं हिङ्गुलं भस्म लोहम् विषं सर्वमेतत्समांशं निदध्यात्
क्षिपेद्भस्म शाङ्ख कला भागिकं च ॥ दृढं मईयेत्कज्जलाभं समस्तं
ददीतास्य वलं जयाजीरकाभ्याम् । जयाजातिजातीफलाभ्यां प्रयुक्तो
जयेत्तक्रयोगात्पयः पानयोगात् ॥ ग्रहण्यानिमान्धं क्षयं गुल्मशूला
न्यभिन्यासम्मुख्यान् महावायुरोगान् ।
स्वकीयानुपानैर्जयेत्सर्वरोगां
रिछवावीक्षणं दैत्यवृन्दं यथाऽश्रु ॥
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, कान्तलोह भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, शुद्ध मनसिल, स्वर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध हिङ्गुल, लोह भस्म और शुद्ध बछनाग १ - १ भाग तथा शंख भस्म १६ भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके अत्यन्त बारीक करें। मात्रा ३ रत्ती ।
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इसे भांग और जीरे चूर्णके साथ, या भांग, जावत्री और जायफलके चूर्णके साथ सेवन कराने