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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रसप्रकरणम् ] www. kobatirth.org पञ्चमी भागः (८१२२) सङ्कोचरस : ( रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. । कुष्ठा. ; रसे. चि. म. । अ. ९ ) मृतताम्राभ्रकं तुल्यं तयोः सूतञ्चतुर्गुणम् । शुद्धं तन्मयेत्खले गोलकं कारयेत्ततः ॥ त्रिभिस्तुल्यं शुद्धगन्धं लौहपात्रे क्षणं पचेत् । तन्मध्ये गोलकं पाच्यं यावज्जीर्णन्तु गन्धकम् ॥ एतन्मृद्वग्रिना तावत्समुद्धत्य विचूर्णयेत् । गुग्गुलुर्निम्बपञ्चाङ्गं त्रिफला चामृता विषम् || पटोलं खादिरं सारं व्याधिधातं समं समम् । चूर्णितं मधुना लेह्यं निष्कमौदुम्बरापहम् ॥ रसः सङ्कोचनामायं कुष्ठे परमदुर्लभः || ताम्र भस्म और अभ्रक भस्म १-१ भाग और शुद्ध पारद ८ भाग ले कर तीनों को एकत्र खरल करें। जब सब चीजें अच्छी तरह मिल जाएं तो सबका एक गोला बना लें । तदनन्तर १० भाग शुद्ध गंधकको कढ़ाई में पिघला कर उसमें वह गोला रख दें और मन्दाग्नि पर पकावें ( गन्धक में आग न लग जाय इस बात का ध्यान रक्खें ) । जब सम्पूर्ण गन्धक जीर्ण हो जाए तो कढ़ाईको अग्निसे नीचे उतार कर ठंडा कर लें और raat are arh बारीक करें | तत्पश्चात् उसमें गूगल, नीमका पंचाङ्ग, हर्र, बहेड़ा, आमला, गिलोय, शुद्ध बछनाग, पटोल, खैरसार और अमलतासकी छाल; इनका एक एक भाग चूर्ण मिला कर अच्छी तरह खरल करके रक्खें । मात्रा - ४ माशे । (व्यवहारिक मात्रा - २ रती । ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०१ इसे शहद में मिलाकर सेवन करनेसे उदुम्बर कुष्ठ नष्ट होता है । सङ्ग्रहणीकपाटरसः १५९८ प्र. सं. वृहद् ) " देखिये | " ग्रहणीकपाटरसः (८१२३) सङ्ग्रहणीरसः ( र. का. घे. 1 सङ्ग्रहणी. ) रसं गन्धकं नीलकं ताम्रमभ्रं शिलामाक्षिकं हिङ्गुलं भस्म लोहम् विषं सर्वमेतत्समांशं निदध्यात् क्षिपेद्भस्म शाङ्ख कला भागिकं च ॥ दृढं मईयेत्कज्जलाभं समस्तं ददीतास्य वलं जयाजीरकाभ्याम् । जयाजातिजातीफलाभ्यां प्रयुक्तो जयेत्तक्रयोगात्पयः पानयोगात् ॥ ग्रहण्यानिमान्धं क्षयं गुल्मशूला न्यभिन्यासम्मुख्यान् महावायुरोगान् । स्वकीयानुपानैर्जयेत्सर्वरोगां रिछवावीक्षणं दैत्यवृन्दं यथाऽश्रु ॥ शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, कान्तलोह भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, शुद्ध मनसिल, स्वर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध हिङ्गुल, लोह भस्म और शुद्ध बछनाग १ - १ भाग तथा शंख भस्म १६ भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके अत्यन्त बारीक करें। मात्रा ३ रत्ती । For Private And Personal Use Only इसे भांग और जीरे चूर्णके साथ, या भांग, जावत्री और जायफलके चूर्णके साथ सेवन कराने
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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