Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[सकारादि
वा
मात्रा-१ माशा। ( व्यवहारिक मात्रा- सन्निपाततूलानलरसः २ रत्ती ।)
(र. रा. सु. ; र. चं. । ज्वरा. ; रसे. चि. यह रस सन्निपातको शीघ्र ही नष्ट कर |
म. । अ. ९) देता है।
" सन्निपातोन्मूलनरसः " देखिये । (८१३३) सन्निपातगजाङ्कुशरसः पाठान्तरके अनुसार सेंधा नमकका अभाव है। (र. र. स. । उ. अ. १२)
(८१३४) सन्निपातभैरवो रसः (१) रसगन्धकताम्राभं लागली वह्निरामठम् ।
( भै. र. , र. रा. सु. । ज्वरा.) वन्ध्यापटोलनिर्गुण्डी सुगन्धा निम्बपल्लवाः ॥
हिडलस्य विशुद्धस्य साईतोलचतुष्टयम् । पाठाक्षारत्रयं क्ष्वेडबोलधत्तूरतन्दुलैः। गन्धकस्य विषस्यापि प्रत्येकं तोलकद्वयम् ॥ शृङ्गी मधुकसारं च जम्बीराम्लेन मर्दयेत् ॥
| समाषकछयश्चैव कनकात्तोलकत्रयम् । कुर्याद्धि निष्कमानेन वटिका सा नियच्छति। माफकाधिकतोलैक टङ्गणस्य तथैव च ॥ सस्वेददाहाभिन्यासं सन्निपातगजानुशः ॥ | सम्मर्य जम्बीररसैबटीश्छायाविशोषिताः ।
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, अभ्रक गुञ्जैकपरिमाणास्तु कारयेत् कुशलो भिषक् ।। भस्म, कलियारीकी जड़, चीतामूल, हींग, बांझ- | एकान्तु भक्षयेत्तस्य गोलयित्वाकद्रवैः । ककोड़ेकी जड़, पटोल, संभालुकी जड़, तुलसी, घोरे त्रिदोषे दातव्यः सन्निपातज्वरापहः ॥ नीमके पत्ते, पाठा, जवाखार, सज्जीखार, सुहागा, शुद्ध बछनाग, हीराबोल, धतूरा, चौलाई की जड़,
शुद्ध हिंगुल (शिंगरफ) ४॥ तोले, शुद्ध काकड़ासिंगी और महुवेके वृक्षका सार ( या
गन्धक २ तोले, शुद्ध बछनाग २ तोले, धतूरेके मुलैठीका सत ) समान भाग ले कर सबको एकत्र
शुद्ध बीज ३ तोले २ माशे और सुहागेकी खील मिला कर जम्बीरी नीबूके रसमें खरल करें और
२ तोला १ माशा ले कर सबको एकत्र मिलाकर ४-४ माशेकी गोलियां बना लें।
जम्बीरी नीबूके रस में खरल करके १-१ रत्तीकी
गोलियां बना लें और छायामें सुखा कर सुरयह रस अत्यधिक स्वेद और दाहयुक्त अभि- क्षित रखें। न्यास सन्निपातको नष्ट करता है।
इनमेंसे १-१ गोली अदरकके रसमें मिला( व्यवहारिक मात्रा-१ माशा ।) कर देनेसे घोर सन्निपात ज्वर नष्ट होता है।
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