Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
अथ सकारादिलेपप्रकरणम्
((८०२१) सप्तदला दिलेपः
( वृ. मा. ; यो. र. । ब्रणशोथा. ; च. द. । व्रणशोथा. ४३ )
सप्तदलदुग्धकल्कः शमयति दुष्टत्रणं प्रलेपेन ॥ सप्तपर्ण ( सतौना वृक्ष) का दूध लगानेसे दुष्ट व्रण नष्ट होता है ।
(८०२२) सप्तामृतालेपः
( र. र. । कुष्टा . ) शतमूलीरसचैव कृष्णमूल्यामृताकुची । चक्रं चैडराजा वज्रीसमभागेन लेपयेत् ॥ वातरक्तं निहन्त्याशु कुष्ठमन्यं विनाशनम् सप्तामृतो भवेल्लेपो गदापत्रे निशाकरः || श्रीमद्गइननाथेन निर्मितो विश्वसम्पदि ॥
शतावर का रस, काली सारिवा, बाबची, गिलोय, अमलतासके पत्ते, तगर, पंबाड़ के बीज और थूहरका दूध समान भाग ले कर चूर्ण योग्य चीजों का चूर्ण बनावें और फिर सब चीजों को एकत्र मिला कर लेप बना लें ।
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(८०२३) समुद्रफेनजशोधनलेप
( रा. मा. । ग्रन्थ्यर्बुदा २६ ) अम्भोधिफेनकपणाकुपितासृगुत्थं
यन्मण्डलं भवति तच्छिशिराम्बु पिष्टैः । प्रणश्यति पलाशतरोः पलितं सान्ध्यं यथा तिमिरमिन्दुकरोपगूढम् ||
[ सकारादि
समुद्रफेनकी रगड़ लगने से रक्त दुष्ट हो कर जो मण्डल (चकते) उत्पन्न हो जाते हैं वे ढाक ( पलाश) के बीजोंको ठण्डे पानीमें पीस कर लेप करनेसे नष्ट हो जाते हैं ।
(८०२४) सरलादिलेपः (१) (ग. नि. । शिरो. १ ) सरलामरदार्व्यम्बुकुष्ठगन्धतृणैः समैः । सक्षारलवणैः पिटेर्लेपः कफशिरोर्तिहा ॥
सरलकाष्ठ, देवदारु, सुगन्धवाला, कूठ, सुगन्धतृण ( मिर्चियागन्ध ), जवाखार और सेंधानमक बराबर बराबर ले कर सबको पानीके साथ पीस कर लेप करने से कफज शिरपीड़ा नष्ट होती है । (८०२५) सरला दिलेप: (२)
1
( व. से. । शिरो. ) सरलागुरुशार्ङ्गष्टादेवकाष्ठैः सरोहिषैः । क्षीरपिटैः सलवणैः सुखोष्णैर्लेपयेच्छिरः ॥
धूपसरल, अगर, करञ्ज, देवदारु, रोहिषतृण ( मिर्चियागन्ध ) और सेंधा नमक समान भाग ले कर सबको दूधमें पीस कर मन्दोष्ण इसे लगाने से वातरक्त और अन्य प्रकार के कुछ करके लेप करनेसे कफज शिरोरोग नष्ट होता है।
हैं।
(८०२६) सर्जरसादिलेप: (१)
(वै. म. र. । पटल ११ ) शिग्रुप से सर्जरसं पिट्वा मसूरिकाम् । उत्पन्नमात्रामा लिम्पेत् सा तदैव विनश्यति ||
मसूरिकाके उत्पन्न होते ही उस पर रालको सहजने के पत्तोंके रस में पीस कर लेप करनेसे वह तुरन्त नष्ट हो जाती है ।
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