Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
आसवारिष्टप्रकरणम् ]
मात्रा -५ माशे ।
अनुपान ---- दूध (व्यवहारिक मात्रा - १ तोला)
नोट—आसव में स्वर्णपत्र डालने से वह उसमें सप्ताहैकं स्थापयेत् प्रावृतास्ये
विलोन नहीं होते अतएव निम्नलिखित विधिसे स्वर्ण-ल - लवण बना कर डालना चाहिये
पञ्चमो भागः
सारिवाद्यासव: भै. र. 1 प्रमेहा. )
प्र. सं. ७४३८ " शारिवाद्यासवः " देखिये । (८०२०) सूक्ष्मैलाद्यरिष्टः (भै. र. । शूला. )
सूक्ष्मैलाया द्वे पले जातिकोषं
स्थूलैला च दीपनी देवपुष्पम् । For कुङ्कुमं क्षीरकाकोलका च
प्रत्येकशः कोलमानं प्रकुटच ॥
सञ्जीविन्याः कौडवं तोयमर्द्ध
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
एक पक्की (आतशी) शीशी में ३ तोले स्वर्ण डालकर उसे स्प्रिट लैम्प पर गरम करें और पौनापौना तोला नमक व शोरेका तेजाब एकत्र मिलाकर उसमेंसे जरा जरासा शीशीमें छोड़ते रहें, जब तक कि स्वर्ण पिघल न जाय। तत्पश्चात् उसमें ४ तोले सेंधा नमक का चूर्ण मिला दें और फिर जब जल सूख जाय और स्वर्णका रंग नारंगी हो जाय तो शीशीको ठण्डा करके उसमेंसे स्वर्ण लवणको निकाल लें ।
|
छोटी इलायची १० तोले तथा जावित्री, बड़ी इलायची, अजवायन, लौंग, दालचीनी, केसर और क्षीरकाकोली ७॥ - ७॥ माशे ले कर सबका बारीक चूर्ण करें और फिर 30 तोले संजीवनीसुरा तथा २० तोले पानीको एकत्र मिला कर उसमें यह चूर्ण मिलाकर काच या चीनी के पात्रमें भरकर सुरक्षित रक्खें एवं ७ दिन पश्चात् निकालकर छान लें।
उद्धृत्यैनं वस्त्रपूतं प्रयुञ्ज्यात् ॥ विन्दुत्रिंशतवादी पष्टिबिन्दुमितां पराम् । अस्य मात्रां प्रयुञ्जीत शूलरोगापनुत्तये ॥
૨૦૦
स्निग्धे भाण्डे सर्वमेतभिधाय ।
मात्रा
-३० से ६० बूंद तक ।
इसके सेवन से शूलरोग नष्ट होता है ।
देखिये ।
स्वल्पचुक्रसन्धानम्
( वृ. मा । अजीर्णा च द । ग्रहण्य. )
,
प्र. सं. १८१६ "चुक्रसन्धानम्" (स्वल्प )
इति सकारावासवारिष्टप्रकरणम्
For Private And Personal Use Only