Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकर
[शकारादि
अथ शकारादिमिश्रप्रकरणम् (७७०८) शङ्करस्वेदः
(७७०९) शणषीजादियोगः ( भै. र. ; धन्व. । आमवाता.)
(यो. र. । स्नायुका.)
शणवीजचूर्ण भागमेकं, गोधूमपिष्टं भागमेक, कार्पासास्थिकुलत्यिकातिल
द्वयमेकीकृत्य घृतेन पक्तव्यं गुडेन भक्षयेत् । यवैरेरण्डमूलातसी
एवं त्रिदिनं कार्य स्नायुको नश्यति ॥ वर्षाभूशणवीजकानिक
____सनके बीजोंका चूर्ण और गेहूंका आटा युतैरेकीकृतैर्वा पृथक् ।
१-१ भाग ले कर दोनोंको एकत्र मिला कर स्वेदः स्यादिति कूपरोदर
( पानीमें घोल कर ) घीमें पकावें । इसमें गुड़ शिरःस्फिपाणिपादाङ्गुली- मिला कर ३ दिन सेवन करनेसे स्नायुक (नहरवा) गुल्फस्कन्धकटीरुजो
नष्ट हो जाता है। विजयते सामाः समीरानुगाः ॥
(७७१०) शरपुङ्खामूलयोगः कपासके बीज ( बिनौले ), कुलथी, तिल, (रा. मा. । स्त्रीरोगा.) जौ, अरण्डकी जड़, अलसी, पुनर्नवा और सनके मृलेन वा चिकुरमध्यगतेन बाणबीज; ये सब चीजें मिला कर अथवा इनमेंसे कोई |
पुलोद्भवेन सुखमेव भवेत्प्रसूतिः ॥ एक या अधिक ले कर, पीस कर चूर्ण बनावें।
शिर पर (बालोंमें) सरफोंकेकी जड़ रखनेसे और उसे कांजीमें भिगोकर उसकी दो पोटलियां ।
। सुख पूर्वक प्रसव हो जाता है। बनावें । तदनन्तर एक हांडीमें कांजी भरकर उसे |
(७७११) शरादिक्षीरम् अग्निपर चढ़ाकर उसके मुख पर चलनी ढक दें
(वृ. नि. र. । कासा.) और उसपर उपरोक्त पोटलियां रक्खें । जब कां.
शरादिपञ्चमूलस्य पिप्पलीद्राक्षयोस्तथा । जीकी भाफसे पोटलियां गर्म हो जाएं तो उनमेंसे
कषायेण धृतं क्षीरं पिबेत्समधुशर्करम् ।। एक पोटलीसे पीड़ा वाले स्थानको सेकें और उसके
' शर ( सरकण्डे ) की जड़, कासकी जड़, ठंडा होने पर दूसरी पोटलीसे सेकें। इसी प्रकार पोटलियोंको बदलते रहें।
दाभकी जड़, ईखको जड़ और शालिमूल तथा पीपल
और द्राक्षा; समान भाग ले कर काथ बनावें । इस प्रकार सेक करनेसे कूपर, उदर, शिर, इसके साथ दूध सिद्ध करके उसमें शहद और स्फिक, हाथ, पैर, उंगली, गुल्फ, स्कन्ध और खांड मिला कर पीनेसे कासका नाश होता है। कमरकी आमवातज पीड़ा नष्ट होती है।
(यह योग पित्तज कासमें उपयोगी है।)
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