Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरण
पञ्चमो भागः .
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इस औषधके सेवन कालमें नित्य प्रति शरीर समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली पर मक्खनकी मालिश करके थोड़ी देर धूपमें बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण बैठना चाहिये।
मिला कर उसे भंगरेके रसकी २१ भावना दें । __इसे इस विधिसे सेवन करनेसे प्रथम सप्ताहमें | ( रसमें खरल करके हरबार सुखा लेना चाहिये ।) श्वित्रके स्थान पर अग्निदग्ध वत् फफोले (छाले) मात्रा-१ माशा । उठेगे, दूसरे सप्ताहमें उनके स्थानमें घाव हो इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे श्वेत जायंगे और तीसरे सप्ताहमें घाव भरकर कुष्ठ नष्ट | कुष्ठ नष्ट होता है। हो जायगा।
(७७०७) श्वेतारिरसः (२) घाव भर जानेके पश्चात् उनके निशानों पर
(वृ. यो. त.। त. १२०) नीबूके रसमें केसर घोट कर या उक्त गुटिका तक्रमें
शुद्धमूतसमं गन्धं त्रिफलां भृगराजकम् । घिस कर लगानी चाहिये ।। • पथ्य-प्रथम सप्ताहमें दिनमें तीन बार गुआं भल्लातकं कृष्णां निम्बबीज समं पृथक ॥ तक भात और दूसरे सप्ताहमें घृत रहित मौठकी मदयेभृगजद्रावैदिनमेकं निरन्तरम् । दालका यूष और भात देना चाहिये तथा तीसरे | वायसी त्वग्रसदेंया भावनाश्चैकविंशतिः॥
बाकुचीबीजनियू हैस्तावत्तिस्राः प्रकल्पयेत् । समाहमें मौठकी दालका यूष, भात और थोड़ा 'त्रिफला घृत देना चाहिये।
ततः सिद्धो भवेदेष श्वेतारिन मतो रसः ॥ . इस प्रयोगसे श्वित्र कुष्ठ नष्ट हो कर शरीर | मध्वाज्यनिष्कमात्रं तं खादेच्छित्रविनाशनम् ॥ कान्तिमान हो जाता है।
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, हरी, बहेडा, आ___ (७७०६) श्वेतारिरसः (१) मला, भंगरा, शुद्ध गुञ्जा, शुद्ध भिलावा, पीपल और ( भै. र. । कुष्टा. ; र. का. थे. । कुष्ठा. ; रसे. | नीमके बीज समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धचि. म. । अ. ९)
ककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषशुद्धमूतं समं गन्धं त्रिफलाभृङ्गबागुजी।।
धियों का बारीक चूर्ण मिला कर उसे १ भावना भल्लातकं तिलं कृष्णं निम्बबीजं समं समम् ॥ भंगरे के रसकी, २१ भावना काकजंघा ( या मदयद् भृजद्रावः शाष्य प्रष्य पुनः पुनः। | मकोय ) के रसकी और ३ भावना बाबचीके इत्यं कुर्युत्रिसप्ताहं रसः श्वेतारिको भवेत् ॥ | बीजोंके काथकी दे कर सुखा लें। . मध्वाज्यैषिमात्रन्तु खादेच्छेतं विनाशयेत् ॥
मात्रा-१ निष्क । शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, त्रिफला, भंगरा, I इसे शहद और धीके साथ सेवन करनेसे बाबची, भिलावा, काले तिल और नीमके बीज ) श्वेत कुष्ठ नष्ट होता है ।
इति सकारादिरसप्रकरणम्
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