Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[शकारादि
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नाश हो जाता है । इसे ५ मास तक सेवन कर- सफेद कनेरकी कोंपलोंको मल कर रस निनेसे काम शक्ति बढ़ती है और ६ मास तक सेवन काल कर आंखमें डालनेसे तुरन्तकी दुखने आई करनेसे पलित ( बालोंका श्वेत होना ) रोग नष्ट हुई आंखको आराम हो जाता है। हो जाता है । यदि सात मास तक यह औषध
(५७३७) श्वेतगिरिकांदियोगः सेवन की जाय तो शरीर कान्तिमान हो जाता है;
(ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) आठ मासमें बल बढ़ जाता है । ९ मास तक
श्वेताद्रिकाः सेवन करने वाला मनुष्य १०० वर्ष तक जीवित
सपुनर्नवाया रहता है । इसे निरन्तर १० मास सेवन करनेसे
मूलैः मुपिष्टैर्यवचूर्णयुक्तैः।
विलोचनं पूरितमम्बुयुक्तैमनुष्यका स्वर अति श्रेष्ठ हो जाता है। ११ मासमें शरीरका बल अत्यधिक बढ़ जाता है और
विमुच्यते पुष्पकृतोपसर्गात् ।। पूरे १ वर्ष तक सेवन करने वाला तो अदृश्य हो
सफेद कोयलकी जड़, पुनर्नवा (बिसखपरे)की जाता है (१)
जड़ और जौके चूर्णको पानीके साथ बारीक पीस १ वर्ष तक इसे सेवन करनेके पश्चात् इच्छा
कर कपड़ेसे छान लें। नुसार आहार विहार किया जा सकता है। इसे इसे आंखमें डालनेसे फूली नष्ट होती है । सेवन करते रहनेसे मनुष्य समस्त पीड़ाओंसे मुक्त (७७३८) श्वेतापराजितामूलयोगः हो कर कल्प पर्यन्त जीवित रहता है तथा उसे
___ (रा. मा. । मुखरोगो. ६) कभी वृद्धावस्था नहीं आती।
पुष्ये गृहीतं गिरिकणिकाया इसे सेवन करने वाले मनुष्यको आठों सि
मूल सिताया गलके निबद्धम् । द्रियां प्राप्त हो जाती हैं।
गव्येन लीढं यदि वा घृतेन (७७३६) श्वेतकरवीररस-योगः । निहन्ति घोरामपचीं तदेव ॥ ( रा. मा. । अ. ३)
सफेद कोयलकी जड़को गलेगें बांधने तथा श्वेत करवीराकसलयविच्छेदरसेन पूरिताक्षस्य । गोघृतमें मिला कर चाटनेसे घोर अपची भी नष्ट तत्कालसमुत्पनो नयनप्रकोपः शमं याति ॥ । हो जाती है।
इति शकारादिमिश्रमकरणम्
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