Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम्
पञ्चमो भागः
१८५
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अथ षकाराद्यञ्जनप्रकरणम् (७७६३) षडङ्गी वर्तिः
लाल चन्दन, हर्र, बहेड़ा, आमला, सुपारी
| और पलाश (ढाक) के वृक्षका गोंद; इनका बारीक (ग. नि. । नेत्ररोगा. ३)
चूर्ण समान भाग लेकर पानीमें पीसकर वर्ति चन्दनत्रिफलापूगपलाशतरुशोणितैः । बनावें। जलपिष्टैः षडङ्गीति वतिस्तिमिरनाशिनी ॥ इसे आंखमें लगानेसे तिमिर नष्ट होता है ।
इति षकारायञ्जनप्रकरणम्
अथ षकारादिरसप्रकरणम् (७७६४) षडाननगुटिका चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह खरल करें एवं अन्तमें ( रसे. सा. सं. ; र. च. ; र. रा. सु. । कुष्ठा. ;
आवश्यकतानुसार पुराना गुड़ मिला कर घोटें और रसे. चि. म. | अ. ९)
(३-३ रत्तीकी ) गोलियां बना लें।
ये गोलियां विरेचनी, लध्वी, दीपनी और विषोषणं टङ्कणपारदश्च
| पाचनी हैं । इनके सेवनसे कुष्ठ, आमाशयका तीन सगन्धचूर्णश्च समांशयुक्तम् ।
शूल और अश्मरिका नाश होता है। इसे शीतल नेपालचूर्ण द्विगुणं गुहाक्तं
जलसे देनेसे विरेचन होता है और उष्ण जल देनेसे सम्मर्थ सर्व गुटिका विधेया ॥
दस्त बन्द हो जाते हैं। विरेचनी सर्वविकारहन्त्री लवी हिता दीपनी पाचनीयम् ।
| (७७६५) षडाननरसा (१) कुष्ठे हिता तीव्रतरे हि शूले
(र. चं. । अर्शी. ; रसे. चि. म. । अ. ९ ; रे. चामाशये चाश्मगते विकारे ।
| का. धे. ; वृ. नि. र ; र. रा. सु. । अर्शो.) संशोधनी शीतजलेन सम्यक
वैकान्त ताम्राभ्रकगन्धकानां साहिणी चोष्णजलेन युक्ता । रसस्य कान्तस्य समानभागः। शुद्ध बछनाग, कालीमिर्च, सुहागेकी खील,
चूर्ण भवेत्तेन षडाननोऽयं शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक समान भाग और
अर्थो विनाशाय च वल्लमात्रः॥ शुद्ध जमालगोटा २ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धकको वैक्रान्त भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, शुद्र कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधोंका , गंधक, कान्तलोह भस्म और शुद्ध पारद समान
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