Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
२१८ भारत-भैषज्य-रत्नाकर
[ सकारादि . (७८९०) स्वर्जिकादिक्षारयोगः । सोनागेरुका चूर्ण शहद में मिलाकर चटानेसे (वृ. मा. । गुल्मा.)
| बालककी छर्दि (वमन) नष्ट हो जाती है। स्वर्जिकाकुष्ठसहितः क्षारः केतकिजोऽपि वा। स्वल्पनायिकाचूर्णम् तैलेन पीतः शमयेद् गुल्मं पवनसम्भवम् ॥
( रसे. चि. म. । अ. ९) सज्जीक्षार, कूठ और केतकी वृक्षका क्षार |
प्र. सं. ६३५९ " लाई चूर्णम् (५) लघु " समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
देखिये। इसे तेलमें मिलाकर पीनेसे वातज गुल्म नष्ट होता है।
स्वल्पलवडाचं चूर्णम् (मात्रा-१ माशा ।)
(भै. र. । ग्रहण्य.) (७८९१) स्वर्जिक्षारादियोगः ।
प्र. सं. ६२२२ " लवङ्गादि चूर्णम् (२)"
देखिये। ( ग. नि. । उदरा. ३२ ) · सर्जिः सयवक्षारा नीली च त्रिकटु पञ्च लवणानि (७८९३) स्वेदशोषकपूर्णम् चित्रकसहितं चूर्ण सघृतं सर्वोदरं हन्ति ॥
(वृ. नि. र. । ज्वरा.) सज्जीखार, जवाखार, नीलवृक्ष, सेांठ, मिर्च, ।
स्वेदोद्गमे भ्रष्टकुलित्यचूर्ण पीपल, सेंधानमक, संचल (काला नमक), विड
निर्यातनं शस्तमिति ब्रुवन्ति । लवण, सामुद्र लवण, उद्भिद लवण और चीतामूल
जीर्ण शकुद्गो लवणस्य भाजनं समान भाग ले कर चूर्ण बनावें।
सञ्चणितं स्वेदहरं सुधूलनात् ॥ इसे घीके साथ सेवन करनेसे समस्त प्रकारके उदर रोग नष्ट होते है।
यदि सन्निपात ज्वरमें अधिक पसीना आने
लगे तो भुनी हुई कुलथीको पीस कर शरीर पर (मात्रा-१॥-२ माशे।)
उसकी मालिश करनी चाहिये । अथवा गायका (७८९२) स्वर्णगैरिकयोगः
सूखा हुवा गोबर और नमक रखनेका मिट्टीका (व. से. । बालरोगा.)
पात्र समान भाग ले कर दोनोंको बारीक पीसकर मुवर्णगैरिकस्यापि चूर्णानि मधुना सह । एकत्र मिला कर शरीर पर उसकी मालिश करनी लीवा मुखमवामोति सिमं हि छर्दितः शिवः॥ चाहिये ।
इति सकारादिचूर्णप्रकरणम्
--HD
For Private And Personal Use Only