Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
११५
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ममदाशतं च भजते न च शुक्रक्षयो भवेत् । इन्हें यथोचित मात्रानुसार गोदुग्धके साथ नातःपरतरं किंचित्विद्यते वाजिकर्ममु॥ प्रातः या भोजनके समय अथवा सायंकाल के समय शतावरीमोदकं च वासुदेवेन निर्मितम् ।। सेवन करनेसे अनेकों स्त्रियोंसे समागम करनेकी
शतावर, गोखरु, खरैटीके बीज ( या मूल | शक्ति आ जाती है । त्वक् ), अतिबला (कंघी), कौंचके बीज, तालम
शम्बकचूर्णम् खाना और विदारीकन्द इनका चूर्ण ५-५ तोले, भांगका चूर्ण पूर्वोक्त समस्त चूर्णसे चार गुना
__ प्र. सं. ७५३१ शङ्ख चूर्णम् (२) देखिये । (१४० तोले ), भैंसका दूध और शतावरका रेस (७५७०) शम्बूकयोगः ३५-३५ छटांक (प्रत्येक १७५ तोले ),
ल। (व. से. । परिणाम शूला. ; यो. र. । शूला. ; र. विदारीकन्दका रस २ सेर और मिश्री ६। सेर ले |
चं. ; वृ. मा. ; वृ. नि. र. । शूला. ; वृ. यो. कर सबको एकत्र मिलाकर ताम्र पात्रमें पका और
त. । त. ९५) चाशनी तैयार हो जाने पर उसमें सेठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, आमला, काकड़ासिंगी, दाल
शम्बूकजं भस्म पीतं जलेनोष्णेन तत्क्षणात् । चोनी, इलायची, तेजपात, सेंधानमक, कचूर, पक्तिजं विनिहन्त्येतच्छूलं विष्णुरिवासुरान् धनिया, सुगन्धबाला, नागरमोथा, काला और सफेद | उष्ण जलके साथ क्षुद्र शंखकी भस्म सेवन जीरा, कुन्दर गोंद, मुरामांसी; काकोली, क्षीर- करनेसे पक्तिशूल तुरन्त नष्ट हो जाता है। काकोली, मुनक्का, बंसलोचन, कस्तुरी, जावत्री, जायफल, जटामांसी, तालांकुर, कसेरु, सोया,
( मात्रा-आधा माशा ।) चव्य, देवदारु, गठिवम, लौंग, कूठ, अजवायन, .. (७५७१) शम्बूकादिवटी (१) कौंचके बीज, कायफल, मेथी, सौंफ, मुलैठी,
(भै. र. । ग्रहण्य. ; रसे. सा. सं. ; र. चं. ; वृ. तालीसपत्र, खजूर और सुहागेकी सील; इनका
नि. र. । ग्रहण्य. ; वृ. यो. त. । त.६७ ) ७॥-७॥ माशे चूर्ण मिलायें तथा इस सम्पूर्ण चूर्णसे आधा शुद्ध गंधक और गंधकसे चौथाई शुद्ध | दग्धशम्बूकसिन्धूत्यं तुल्यं क्षौद्रेण मर्दयेत् । पारद ले कर दोनोंकी कज्जली बना कर उसमें | मायकेन निहन्त्याशु वातसङ्ग्रहणीगदम् ॥ मिला दें और छोटे छोटे मोदक बना कर उन्हें |
क्षुद्र शंखकी भस्म और सेंधानमक समान दालचीनी, इलायची और तेजपातके मिश्रित चूर्णमें |
भाग ले कर एकत्र खरल करें। आलोडित करें ( रौंदल लें ) और फिर मृत्पात्र या कांचकी बरनी में रख कर उसमें थोड़ासा कपूर
इसे शहदमें मिलाकर खानेसे वातज संग्रहणी ( बिना पिसा ) डाल दें कि जिससे वे सुगन्धित | शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। हो जायं।
मात्रा-१ माषा ।
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