Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
पश्चमो भागः
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(७६२६) शीतज्वरारिरसः (२) इसे पानमें रख कर खानेसे घोर शीतञ्चर ( र. चि. म. । स्त. ९) नष्ट होता है।
पथ्य---तक भात । षट्पल तालकं शुद्धं बीजं भल्लातकोद्भवम् ।।
( व्यवहारिक मात्रा ४ रत्ती ।) सये भावयेद्गाद भृङ्गराजस्य वारिणा ॥ शुक्लायाश्चापि कृष्णाया काकमाच्या रसेन च। (७६२७) शीतज्वरारिरसः (३) अर्कसेहुण्डदुग्धेन दातव्या भावनाः क्रमात् ॥ ( शा. सं. । खं. २ अ. १२) तत्कल्क रोटिकाकारं स्थाल्यामारोप्य यत्नतः। न
यत्नतः । तालकं तुत्थकं तानं रसं गन्धं मनःशिलाम् । संशुष्कं च पुनर्धार्थ शरावे शुभलक्षणे ॥ कर्ष कर्प प्रयोक्तव्यं मर्दयेत्रिफलाम्बुभिः ॥ तच्च वसमृदा लिप्त्वा सन्धि रुद्धवा विशोपयेत्। गोलं न्यसेत्सम्पुटके पुटं दद्यात प्रयत्नतः । ततश्च वालुकायन्त्रे धार्य तच्च प्रयत्नतः ॥ ततो नीत्वादग्वेन वन्त्रीदुग्धेन सप्तथा ।। चुल्ल्यामारोप्य दातव्यो वहिमित्र क्रमात् । काथेन हन्त्याः श्यामाया भावयेत्सप्तधा पुनः। स्वागशीतं गृहीत्वा तद्गोलं सञ्चूर्णयेदृढम् ।।
मापमात्र रसं दिव्यं पञ्चाशन्मरिचयुतम् ॥ तस्मिन्मरिचचूर्णस्य द्विपलं चाथ मेलयेत् ।
गुडगद्या कं चैव तुलसीदलयुग्मकम् । नागवल्लीदलेनायं माषमात्रश्च भक्षितः ॥ भक्षयेत्रि देन भक्त्या शीतारिं दुर्लभं परम् ।। हन्ति शीतज्वरं घोरं धुवं तक्रौदनाशिनः । पथ्यं दुग्धोदनं देयं विषमं शीतपूर्वकम् । रसः शीतज्वरारिहिं वैद्यन्दैः सुभाषितः॥ दाहपूर्व हरत्याशु तृतीयकचतुर्थकौ ॥ ___ शुद्ध हरताल और भिलावे ३०-३० तोले द्वयाहिकं सततं चैव वैवयं च विनश्यति ॥ ले कर दोनोंको बारीक पीस कर १-१ दिन शुद्ध हरताल, शुद्ध तृतिया, ताम्र भस्म, शुद्ध भंगरेके रस, सफेद और काली मकोयके रस, तथा : पारद, शुद्ध गंधक, और शुद्ध मनसिल ११-१॥ आक और सेहुंडके दूध खरल करके उसकी एक तोला ले कर प्रथम पारे गन्धकी कजली बनावें रोटीसो बनावें और उसे उल्टी हाण्डी पर रख दें। और फिर उसमें अन्य औषधे मिलाकर सबको जब वह सूख जाय तो उसे शरावसम्पुट में बन्द त्रिफलाके काथमें खरल करके गोला बनावें और करके उस पर ३-४ कपड़मिट्टी कर दें और उसे शरावसम्पुट में बन्द करके (लघुपुटमें ) फूंक बालकायन्त्रमें रख कर ३ प्रहर अग्नि दें। तद- दें । तदनन्तर उसके स्वांगशीतल होनेपर औषधनन्तर जब वह स्वांगशीतल हो जाय तो औषध- को निकाल कर आक और थूहर (सेहंड) के को निकाल कर उसमें १० तोळे काली मिर्चका दृध तथा दन्तीमूल और काली निसोतके काथकी चूर्ण मिलाकर भली भांति खरल करके रखें । सात सात भावना दे कर उडदके समान गोलियां
मात्रा-१ माशा।
बना लें।
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