Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम् ]
पञ्चमो भागः
१४९
-
-
२॥२॥ तोले और भरंगी, नागरमोथा तथा लघुकोलप्रमाणान्तु शस्यते प्रातरेव हि । बायबिडंग ११-११ तोला ले कर सबको एकत्र एकका वटिका ग्राह्या गुल्मशूलविनाशिनी ।। मिला कर घोटें और फिर उसमें सबके बराबर ग्रहण्यामतिसारे च साजीणे मन्दपावके । गुड़ मिलाकर चनेके बराबर गोलियां बना लें। योजयेदुष्णपयसा सुखमाप्नोति निश्चितः।।
इनके सेवनसे कफज शूल नष्ट होता है। सुवर्णश्च भवेदेहं सदोत्साहयुतं नृणाम् ।।
अनुपान-शुण्ठी चूर्णयुक्त, अरण्डीका तेल, हर, सांठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध कुचला, भुनी हींग और काला नमक अथवा उष्ण जल। हींग, सेंधा नमक और शुद्ध गंधक समान भाग
इसी अनुपानके साथ " आनन्द भैरव " ले कर सबको एकत्र (पानीसे) खरल करके छोटे रस देनेसे भी शूल नष्ट होता है ।
बेरके समान गोलियां बना लें । (७६६३) शूलहरक्षारः
इनके सेवनसे गुल्म, शूल, ग्रहणी रोग, अति( र. र. स. । उ. अ. १८)
सार, अजीर्ण और अग्निमांद्यका नाश होता है तथा वन्ध्यालाङ्गलिकामूलं शतु द्विगुणं तयोः।
। देह सुवर्ण सदृश शुद्ध हो जाती और उत्साह त्रयाणां भावयेच्चूर्ण त्र्यहं जम्बीरजद्वैः ॥
: बढ़ता है। रुध्याद् गजपुटे पच्यात्तत्क्षारं मरिचैतैः।। कर्षमात्रं पिबेच्छूली तत्क्षणात्सुखमाप्नुयात् ॥
___अनुपान-उमा दूध । ___ बांझ ककोड़े और लांगली (कलियारी) की इन्हें प्रातःकाल सेवन करना चाहिये । जड़ १-१ भाग तथा शंख ४ भाग ले कर चूर्ण
शूलहररसः (महा) बनावें और उसे ३ दिन तक जम्बीरीके रसमें खरल करके शरावसम्पुट में बन्द करके गजपुटमें पकावें । "
( महेश्वर रसः ) इसमें काली मिचका च मिला कर पीके (वृ. नि. र. । शूला.) साथ सेवन करनेसे शूल तत्काल नष्ट हो । प्र. सं. ५५८७ महेश्वर रस (१) देखिये । जाता है।
(७६६५) शूलान्तकरसः मात्रा-१। तोला। ( व्यवहा. मा.--१ माशा ।)
(र. र. स. । उ. अ. १८ ; र. चं. । शूला.) (७६६४)शूलहरणयोगः (शुलनाशिनीवटी) भस्म सूतस्य खस्यापि पलमेकं पृथक् पृथक । ( भै. र. ; धन्य. ; र. चं. : र. रा. सु. । शूला.: ताम्रभस्म पले द्वे तु गन्धकस्य पलत्रयम् ।। रसे. सा. सं. । शृला. ; वै. २. । शूला. हरितालस्य कर्भाशं विमलं हेममाक्षिकम् ।
___. चि. म. । स्त. ९) पलार्थ हलिनीकन्दं नागवौ पलार्धको । हरीतकी त्रिकटुकं कुचिला हिङ्ग सैन्धवम् । चतुष्पलं तु त्रिवृतमेतत्सर्व विचूर्णयेत् । गन्धकञ्च समं सर्वं वटीं कुर्यात्सुखावहाम् ॥ भूधात्रीस्वरसेनैव भावयेत्सप्तधा भिषक् ॥
For Private And Personal Use Only