Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[पकारादि
सारिवा, देवदारु, पीपल, सांठ बायबिडंग, काली . इसे (गोमूत्रके साथ) सेवन करनेसे शोथोदर मिर्च, पाठा. कमीला, भारंगी, हल्दी, दारुहल्दी, ! नष्ट होता है । कटैली, एरण्डकी जड़, दन्तीमूल, चीता और
(मात्रा-१ माशा ।) कुटकी समान भाग ले कर चूर्ण बना लीजिए | और फिर उसमें इससे दूनी लोह भस्म मिला
(७६९१).श्वासकालेश्वररसा लीजिए। इसे ३-४ माघेकी मात्रानुसार मद्य या (वृ. नि. र. । श्वासा.) गर्म पानीके साथ सेवन करनेसे बीस प्रकारके
मृतं वर्ष मृतं लोहं मृताफै मृतमभ्रकम् । प्रमेह, शल, उदर रोग, प्लीहा, शोथ, अश और
शुद्धसूतं तथा गन्धं मालिकं हिल विषम् ॥ पाण्डका नाश होता है।
जातीफलं लवकं घ त्वगेला नागकेशरम् । उपरोक्त चूर्णको गोमूत्रमें मिला कर गोलियां | उन्मत्तकस्य बीजानि जैपालं रात्रिदुर्लभम् ॥ भी बनाई जा सकती हैं।
एतानि समभागानि मरिचं च त्रिभागिकम् । (व्यवहारिक मात्रा–२-३ रत्ती ।) सर्वमेतत्सित्खल्वे लोहदण्डेन मर्दयेत् ॥
पागन्तरके अनुसार-त्रिफलाके स्थानमें | तावत्सम्मर्दयेयत्नाधावत्सूतो न दृश्यते । पीपलं होनी चाहिये।
शक्रासनस्य स्वरसैर्भावना एकविंशतिः ॥ (७६९०) श्वयथुघातीरसा
द्विगुञ्जा उत्तमा मात्रा आईकस्वरसैयुता ।
तदर्धे बालवृद्धेषु पथ्यं देयं तदुच्यते ॥ (यो. र. ; वृ. नि. र. । शोथा. ; वृ. यो.
| पञ्च श्वासान् क्षयं कासं राजयक्ष्मनिवारणम् । त.। त. १०६)
श्वासकालेश्वरो नाम लोकानामपि दुर्लभः ॥ रसगन्धकलोहकणात्रितामरिचामरदारुनि
___ बंग भस्म, लोह भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक शाजाला | भस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण माक्षिक
शात्रिफलाः। दलितं मृदुगोसलिलेन पिवेदनुरूपममुं श्वय
थूदरहरम् ॥ दालचीनी, इलायची, नागकेसर, शुद्ध धतूरेके बीज, शुद्ध पारद, गन्धक, लोह भस्म, पीपल, शुद्ध जमालगोटा, हल्दी और जवासा १-१ भाग निसोत काली मिर्च, देवदारु, हल्दी और हरं, तथा काली मिर्च ३ भाग ले कर प्रथम पारे बहेड़ा तथा मामला समान भाग ले कर प्रथम गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें । ओषधियोंका चर्ण मिलाकर सबको लोहखरलमें अन्य भोषधियोंका चूर्ण मिला कर सबको गोमूत्रमें | अच्छी तरह घोटें और फिर इन्द्रजौके काथकी २१ घोट कर सुखा कर रखें।
भावना देकर सुखा कर बारीक चर्ण करें।
भस्म,
डूबछना
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