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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [पकारादि सारिवा, देवदारु, पीपल, सांठ बायबिडंग, काली . इसे (गोमूत्रके साथ) सेवन करनेसे शोथोदर मिर्च, पाठा. कमीला, भारंगी, हल्दी, दारुहल्दी, ! नष्ट होता है । कटैली, एरण्डकी जड़, दन्तीमूल, चीता और (मात्रा-१ माशा ।) कुटकी समान भाग ले कर चूर्ण बना लीजिए | और फिर उसमें इससे दूनी लोह भस्म मिला (७६९१).श्वासकालेश्वररसा लीजिए। इसे ३-४ माघेकी मात्रानुसार मद्य या (वृ. नि. र. । श्वासा.) गर्म पानीके साथ सेवन करनेसे बीस प्रकारके मृतं वर्ष मृतं लोहं मृताफै मृतमभ्रकम् । प्रमेह, शल, उदर रोग, प्लीहा, शोथ, अश और शुद्धसूतं तथा गन्धं मालिकं हिल विषम् ॥ पाण्डका नाश होता है। जातीफलं लवकं घ त्वगेला नागकेशरम् । उपरोक्त चूर्णको गोमूत्रमें मिला कर गोलियां | उन्मत्तकस्य बीजानि जैपालं रात्रिदुर्लभम् ॥ भी बनाई जा सकती हैं। एतानि समभागानि मरिचं च त्रिभागिकम् । (व्यवहारिक मात्रा–२-३ रत्ती ।) सर्वमेतत्सित्खल्वे लोहदण्डेन मर्दयेत् ॥ पागन्तरके अनुसार-त्रिफलाके स्थानमें | तावत्सम्मर्दयेयत्नाधावत्सूतो न दृश्यते । पीपलं होनी चाहिये। शक्रासनस्य स्वरसैर्भावना एकविंशतिः ॥ (७६९०) श्वयथुघातीरसा द्विगुञ्जा उत्तमा मात्रा आईकस्वरसैयुता । तदर्धे बालवृद्धेषु पथ्यं देयं तदुच्यते ॥ (यो. र. ; वृ. नि. र. । शोथा. ; वृ. यो. | पञ्च श्वासान् क्षयं कासं राजयक्ष्मनिवारणम् । त.। त. १०६) श्वासकालेश्वरो नाम लोकानामपि दुर्लभः ॥ रसगन्धकलोहकणात्रितामरिचामरदारुनि ___ बंग भस्म, लोह भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक शाजाला | भस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण माक्षिक शात्रिफलाः। दलितं मृदुगोसलिलेन पिवेदनुरूपममुं श्वय थूदरहरम् ॥ दालचीनी, इलायची, नागकेसर, शुद्ध धतूरेके बीज, शुद्ध पारद, गन्धक, लोह भस्म, पीपल, शुद्ध जमालगोटा, हल्दी और जवासा १-१ भाग निसोत काली मिर्च, देवदारु, हल्दी और हरं, तथा काली मिर्च ३ भाग ले कर प्रथम पारे बहेड़ा तथा मामला समान भाग ले कर प्रथम गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें । ओषधियोंका चर्ण मिलाकर सबको लोहखरलमें अन्य भोषधियोंका चूर्ण मिला कर सबको गोमूत्रमें | अच्छी तरह घोटें और फिर इन्द्रजौके काथकी २१ घोट कर सुखा कर रखें। भावना देकर सुखा कर बारीक चर्ण करें। भस्म, डूबछना For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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