Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अअनप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
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(१) शंख, फूलप्रियंगु, मनसिल, सांठ, शंखचूर्णको शहदमें मिला कर आंखमें मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा और आमला; इनके आंजनेसे, या निर्मलीके फल और सेंधा नमकका समान भाग चूर्णको पानीमें पीस कर वर्ति बारीक चूर्ण करके आंजनेसे अथवा समुद्र फेन बनावें ।
और मिश्रीका अंजन बना कर लगानेसे अर्जुन इसे आंखमें आंजनेसे नेत्र स्वच्छ हो जाते हैं।
नामक नेत्र रोग नष्ट होता है। (२) लोह चूर्ण, सांठ, मिर्च, पीपल, सेंधा
(७५००) शम्बकाद्यञ्जनम् (२) नमक, हरं, बहेड़ा, आमला और सुरमा; इनके
(र. र. । नेत्र.) समान भाग चूर्णको पानीमें घोट कर वर्ति | शम्बूकं च वराटं वा दग्धं चैतद्विचूर्णयेत् । बनावें।
अञ्जनं नवनीतेन हन्ति पुष्यं चिरन्तनम् ॥ इसको नाम — कोकिलावर्ति ' है। यह भी
शंः। भस्म या कौड़ी मम्मको नवनीतमें नेत्रों को स्वच्छ करती है।
| मिला कर आंखमें आंजनेसे पुतना फला नष्ट
हो जाता है। (७४९८) शङ्खाद्यञ्जनम् (३) (श्यामावतिः) (व. से. । नेत्ररोगा.)
(७५०१) शर्करायञ्जनम्
(वृ. मा. । नेत्र.) शसस्रोतोऽअनं लाक्षा मरिचं समनःशिलाम् । सितामधककटवङ्गमस्तुक्षौद्राम्ळसैन्धवैः। यवान्युदधिजं फेनं ताम्रचूर्ण समाक्षिकम् ॥ पूरणं हन्ति लौहित्यं रक्तराजीमथार्जुनम् ॥ श्यामावर्तिलिखत्येव शुक्रकाचामेपिष्टकम् ॥ मिसरी, मुलैठी, अरलुकी छाल और सेंधा
शंख चूर्ण, स्रोतोञ्जन (सुरमा), लाख, काली नमक; इनके समान भाग चूर्ण में दहीका पानी, मिर्च, मनसिल, अजवायन, समुद्र फेन और ताम्र- शहद और कांजी मिला कर आंखमें डालनेसे चूर्ण (या भस्म) समान भाग ले कर सबको शहदमें आंखोंकी लाली, लाल रेखा और अर्जुनका नाश घोट कर वर्ति बनावें।
| होता है। ____ यह वर्ति फूले, काच, अर्म और पिष्टकको नष्ट - (७५०२) शशिकलावर्ती करती है।
(वृ. नि. र. । नेत्र. ; र. चं. ; यो. र. । नेत्र. ; (७४९९) शम्बूकाद्यञ्जनम् (१)
वृ. यो. त. । त. १३१)
रसकजलजनाभिः पौरतुत्थं समांशं ( वृ. मा. । नेत्र. ; यो. र. । नेत्ररो.)
वसनगलितमेतन्निम्बुनीरेण पिष्टम् । शः क्षौद्रेण संयुक्तः कतकः सन्धवेन वा। हरति शशिकलैतद्वति संयोजिताक्ष्णोसितयाऽर्णवफेनो वा पृथगअनमर्जुने॥ स्तिमिरकुसुमकण्डूसावरोगामपिल्लाम् ॥
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