Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम् ]
पञ्चमो भाग:
चूना पुते हुवे कु-हड़में बन्द करके पुट दें एवं | प्रथम पारे गंधककी कज्जली बनावें और फिर स्वांग शीतल होने पर निकाल कर पीस कर सुर- | उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर खरल क्षित रक्खें ।
| कर लें। ___ इनके सेवनसे आमातिसार, ज्वरातिसार, । मात्रा-४ माशे । (व्य. मा.-१ माशा।) श्वास, कास, कफ, पित्त, आमवात, अग्निमांद्य,
इसे धीमें मिला कर सेवन करनेसे क्षयका प्रहणी रोग, १८ प्रकारके प्रमेह और निर्बलता
नाश होता है। आदि रोगांका नाश होता है। मात्रा-१५ रत्ती (व्यवहारिक मात्रा-२
(७५४५) शङ्खभास्कररसः ३ रत्ती ।)
(२. सं. क. । उल्ला. ४ ; र. का. धे. । शूला.) ...ज्वरके अतिरिक्त अन्य गोमें इसे ३२ | दग्धं शङ्ख वराटं च तुल्याकै नवनीतयुक् । काली मिचौके चूर्ण और घीके साथ देना | राधे भक्षयेत्सवेशूलातः शखभास्करः ॥ चाहिये।
___ शंख भस्म और कौड़ी भस्म १-१ भाग - पथ्य-शालि चावल, तथा दूध दही आदि तथा ताम्र भस्म २ भाग ले कर सबको एकत्र मधुर आहार ।
खल कर लें। अपथ्य-चरपरे ( मिर्च आदि) पदार्थ. मात्रा-४ माशे (व्यवहारिक मात्राखटाई, क्षारे, और तैलादिको छूना भी न २ रत्त चाहिये ।
इसे नवनीत (मक्खन) के साथ सेवन कर(७५४४)शङ्खपोटलीरसः (२)
| नेसे समस्त प्रकारके शूल नष्ट होते हैं। (वृ. नि. र. । क्षय.)
(७५४६) शवमारणम् ।
( रसे. सा. सं.) रसं गन्धं कम्बोर्भसितमपि कापर्दभसितम् मरीचं भूचन्द्राम्बुधिरससहस्रांशुलविकम् । | अन्धमूषागतं शङ्खं पदमेकं विचक्षणः । रसांध्यंशं टकं सकलमपि चूर्णीकृतमिदं माषाईटणैर्मिश्रं दण्डयन्त्रेण मारयेत् ॥ क्रमाचावन्निष्कं घृतसहितमयात्क्षयहरम् ॥ | शङ्खः सर्वरुजां हन्ति विशेषादुदरामयम् ।
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गंधक १ भाग, | शूलाम्लपित्तविष्टम्भमेहहृद्वहिदीपनः ॥ शंख भस्म ४ भाग, कौड़ी भस्म ६ भाग, काली २४ भाग शंखमें १ भाग सुहागा मिला कर मिर्च १२ भाग और सुहागा चौथाई भाग ले कर ! सबको अन्धमूषामें बन्द करके गजपुटमें पकावें ।
For Private And Personal Use Only