Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य - रत्नाकरः
( ७४६१ ) शिग्रुत्वगादिलेपः
(ग. नि. । श्वयध्व. २३) शिवस्वनक्तमालार्कदाय (मधमूलकैः । गोमूत्रयुक्तैः श्वयथुः प्रलेप्तव्यः कफाधिकः ॥
सइंजनेकी छाल, करञ्जकी छाल, आककी जड़, दारूहल्दी और अमलतासकी जड़ समान ले कर चूर्ण बनावें ।
भाग
इसे गोमूत्र में पीस कर कफ प्रधान शोथ पर लेप करना हितकारी है ।
( ७४६२) शिग्रुमूलादिलेप: (१) (व. से. | अर्बुदा. )
शिग्रुमूलकयोर्बीजं रक्षोघ्नं सरलं यवम् । अमारञ्च सम्पिष्य तक्रलेपोऽर्बुदादिजित् ॥
सहजने के बीज, मूली के बीज, सरसों, चीरका काष्ट, जौ और कनेरकी जड़ समान भाग चूर्ण बनावें ।
कर
इसे तक में पीस कर लेप करनेसे अर्बुदादिका होता है।
(७४६३) शिग्रुमूलादिलेपः (२)
( यो. र. । स्नायु.; यो त । त. ६७; वृ. यो त । त. १२४ )
शिग्रुमूलदलैः पिष्टेः काञ्जिकेन ससैन्धवैः । लेपः स्नायु रोगाणां शमनः परमः स्मृतः ॥ सहजनेकी छाल और पत्ते तथा सेंधा नमक
[ शकारादि
समान भाग ले कर सबको कांजीमें पीस कर लेप करनेसे स्नायुक (नहरने) का नाश होता है। ( ७४६४ ) शिवादिलेप: (१) ( भा. प्र. म. खं. २ । वातरक्ता . )
शिग्रुः सवरुणकरको धान्याम्नानिलार्तिजिल्लेपात् । भवति न वेति विकल्पो न विधेयः सिद्धयोगेऽस्मिन् ॥
सह जनेकी छाल और बरनेकी छालको कांजी में पीसकर लेप करनेसे वातरक्तकी पीड़ा नष्ट होती है।
यह एक सिद्ध योग है । इसके विषय में सन्देह न करना चाहिये ।
(७४६५) शिवादि लेपः (२) ( भा. प्र. म. खं. २ | कर्णक सन्नि. ) शिराजिकयोः कल्कं कर्णमूले प्रलेपयेत् । कर्णमूलभवः शोथस्तेन लेपेन शाम्यति ।।
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सहजनेकी छाल और राईको पानी में पीस कर लेप करनेसे कर्णमूलकी सुजन नष्ट होती है । ( ७४६६) शिवादिलेप: (३) ( शो. सं. । खै. ३ अ. ११ ) शिग्रुशेफालिकैरण्डयवगोधूमसुद्गकैः । सुखोष्णो वहलो लेपः प्रयोज्यो वातविद्रधौ ॥ सहजनेकी छाल, हार सिंगारकी छाल, अरजौ, गेहूं और मूंग समान भाग ले कर
ण्डमूल,
चूर्ण बनावें ।
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