Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[शकारादि
(७४८४ ) श्यामादिलेपः
(१) नोलाथोथा, हरताल, कुटकी, सोंठ, (ग. नि. शिरो. १ ; व, से. । शिरो.) मिर्च, पीपल, लाल सहजनेकी छाल, आककी जड़, श्यामानागरसम्मिश्राच्छेवतस्यन्दनतत्क्षणात् । कनेरकी जड़, कूर, बाबची, भिलावा, खिरनी, नाशं याति त्रिदोषोत्या शिरोतिः संप्रलेपनात्।। सरसों और सेहुंड (सेंड) समान भाग लेकर चूर्ण ___ श्यामा (अनन्तमूल), सेठ और सफेद बनावें । कोयलको पीस कर लेप करनेसे त्रिदोषज शिर पीड़ा (२) लोध, नीमके पत्ते, पीलुके पत्ते, अमलतुरन्त शान्त हो जाती है।
| तासके पत्ते, बायविडंग, कनेरके बीज, हल्दी, छोटी ... (७१८५) श्वदंष्ट्रादिलेपः
| कटेली और बड़ी कटेली समान भाग लेकर (यो. २. ; वृ. नि. र. । मूत्रकृच्छ्रा.)
चूर्ण बनावें । पिष्टवा बदंष्टा फलमूलिका
। इन दोनों में से किसीको भी पानीमें पीस कर ___विडैर्वारुबोजानि सकाधिकानि । मालिप्यमानानि समानि बस्ती
लेप करनेसे श्वेत कुष्ट नष्ट होता है । मत्रस्य निष्यन्दकराणि सद्यः॥ (७४८८) श्वित्रहरलेपः गोखरुके फल, मूलीके बीज, बायबिडंग और (र. चि. म. । स्त. ४) खीरके बीज समान भाग ले कर सबको काजीमें
कलिहारीजटा पृष्ठा स्निग्वं चन्दनवत्सुधीः । पीस कर बस्ति प्रदेश पर लेप करनेसे मूत्र खुल लेपनं श्वित्रकुष्ठेषु कुर्यात्स्फोटो दिनत्रये ॥ जाता है। (७४८६) श्वानविषहरो लेपः
| पलाशस्य ततः पत्रं दद्याच तदनन्तरम् । (यो. चि. म. । अ. ३)
मुश्चन्ति पाण्डुरं वारि स्फोटकाश्च तदाजाः।। गुडतलार्कदुग्धैश्च लेपः श्वानविपं हरेत् ।।
दूरतः क्षालयेद्वारि यथा स्पर्शो न विद्यते । गुड, तेल और आरके दृधको एकत्र मिलाकर
शेरेऽन्यत्र नो भूयायथा कार्य प्रयत्नतः॥ लेप करनेसे श्वान (कुत्ते)का विप नष्ट हो जाता है। .. कलियारीकी जड़को चन्दनकी तरह घिसकर
(७४८७) श्वित्रनाशकलेपः सफेद कुष्ठ पर लेप करदें। इससे तीसरे दिन उस
(सु. सं. । चि, अ. ९) जगह छाले पड़ जायंगे, तब उस पर ढाकका पता सुचालकदुकाव्योपसिंहाहयमारकाः। | बांध दें। इससे उन छालोंसे पीला पानी निकलने कुवावलगुजभल्लातक्षीरिणीसर्पपा:स्नुही॥ लगेगा । उस पानीको इस प्रकार साफ कर देना निखकारिएपीलूनां पत्राण्यारग्वधस्य वा। चाहिये कि जिससे अन्यत्र न लगने पावे । भी विडङ्गासहन्त्रो हरिदे बृहतीद्वयम् ॥ (छालेसे पानी निकल जानेके पश्चात् वहां भाभ्यां श्वित्राणि योगाभ्यां लेपानश्यन्त्यशेषतः पर मक्खन आदि लगा देना चाहिये ।)
इति शकारादिलेपप्रकरणम.
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