Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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लेपप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
___ (७४४३) शादिलेपः (३)
सोया, मकोय, काले तिल और गोराचन ( वृ. मा. । गलगण्डा. ; व. से. । ग्रन्थ्य.) समान भाग ले कर सबको एक दिन हर के काथमें लेपनं शङ्खचूर्णेन सह मूलकभस्मना ।
| लोहेके खरलमें घोटें। कफार्बुदापहं कुर्याद्ग्रन्थ्यादिषु विशेषतः॥ बालोंपर तीन दिन इसका लेप करनेसे सफेद
शंखचूर्ण और मूलीको भस्म समान भाग ले | बाल काले हो जाते हैं। कर पानीमें मिला कर लेप करनेसे कफज अर्बुद
| (७४४७ ) शतपुष्पादिलेपः (२) और ग्रन्थ्यादिका नोश होता है। (७४४ ४) शणमूलादिलेपः
(व. से. । आमवाता. ; वृ. यो. त. । त. ९३ ) ( यो. र. ; वृ. नि. र. ; व. से. । व्रणशोथा. ; शतपुष्पा बचा विश्वश्वदंष्ट्रा वरुणत्वचः ।
शा. सं. । खं. ३ अ. ११) | पुनर्नवा सदेवाहशठीमुण्डितिकाः समाः॥ शणमूलकशिगणां फलानि तिलसर्पपाः। प्रसारणी च तर्कारी फलश्च मदनस्य च । सक्तवः किण्वमतसी प्रदेहः पाचनः स्मृतः॥ शुक्तकाञ्जिकपिष्टाश्च सुखोष्णा लेपने हिता।
सनके बीज, मूलीके बीज, सहजनेके बीज, सोया, बच, सोंठ, गोखरु, बरनेकी छाल, तिल, सरसों, जौका सत्तू, शराबकी गाद और पुनर्नवा (बिसखपरा), देवदारु, कचूर, मुण्डी, अलसी समान भाग ले कर पीस कर लेप लगानेसे प्रसारणी, अरनीमूल और मैनफल समान भाग ले कच्चा फोड़ा पक जाता है।
कर बारीक चूर्ण बनावें। (७४४५) शतधौतसर्पिलेपः
इसे कांजीमें पीस कर मन्दोष्ण करके लेप (पृ. नि. र. । विसर्प.) | करनेसे आमवात नष्ट होती है। सर्पिषा शतधौतेन कृतलेपो मुहुर्मुहुः। निहन्ति सर्ववीस पन्नगं पक्षिराडिव ॥
(७४४८) शतपुष्पादिलेपः (३) __ सौ बार धोये हुवे घृतका बार बार लेप |
(ग. नि. । राजय. ९ ; यो. र.।) करनेसे सर्व प्रकारके विसर्प नष्ट हो जाते हैं। अतपुष्पा समधुकं कुष्ठं तगरचन्दने । (७४४६ ) शतपुष्पादिलेपः (१) आलेपनं स्यात्सघृतं शिरःपाश्वासशूलनुत् ।।
(र. र. रसा. खं. । उप. ५) . सोया, मुलैठी, कूठ, तगर और लाल चन्दनशतपुष्पा काकमाची तिलाः कृष्णाश्च रोचनम का चूर्ण समान भाग ले कर सबको घृतमें मिला दिनं शिवाम्बुना सर्व मर्दयेल्लोहपात्रके ॥ कर लेप करनेसे शिर, पार्श्व और कंधोंका शूल वरले त्रिदिनं कुर्यास्केशानां रञ्जनं भवेत् ॥ | नष्ट होता है ।
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