Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
।शकारादि तैल की दो तीन बूद लिङ्ग पर मर्दन करने से | मुस्तकं चन्दनोदीच्यं सरलं देवदारु च । ध्वजभङ्ग नष्ट होता है । जिस गृह में श्रीगोपाल | मञ्जिष्ठां चन्दनं कुष्ठमेला तगरपादिकम् ॥ तैल हो वहां भूत, पिशाच तथा राक्षस आदि । मांसी शैलेयकं पर्व प्रियॉ शारिवां वचाम् नहीं जाते एवं दरिद्रता तथा कोई विघ्र नहीं होता।
शतावरीमश्वगन्धां शतपुष्पा पुनर्नवाम् ।। अगत के कल्याण के लिये इस तेल का अश्विनी
तसिद्ध स्थापयेत्कुम्भे मासमेकं मुरक्षिते । कुमारों ने निर्माण किया था।
बिल्वतैलमिदं श्रेष्ठमम्लपित्तकुलान्तकृत् ॥ (७४२७) श्रीपर्णीतैलम् शूलमष्टविधं हन्ति साध्यासाध्यं न संशयः । ( भै. र.; च. द.; धन्व.; वृ. नि. र. । स्त्रीरोगा.) |
सूतिकारोगशमनं गर्भदं शुक्रवर्द्धनम् ॥
हस्तपादशिरोदाहं दौर्बल्यं कृशता तथा । श्रीपर्णी रसफस्काभ्यां तैलं सिद्धं तिलोद्भवम्। प्राणीगुल्महिकातिरक्तपित्तज्वरं जयेत् ॥ तलं तूलकेनैव स्तनस्योपरि धारयेत् ॥
क्वाय-६। सेर कच्चे बेलके गूदेको ३२ पतिताऽस्थिती स्त्रीणां भवेयातां पयोधरौ।। सेर पानीमें पकायें और ८ सेर शेष रहने पर गजकुम्भसमाकारापुत्पनी परिमण्डलो ।।
छान लें। गम्भारीकी छालके क्वाथ और कल्कसे सिद्ध अन्य पदार्थ-आमलोंका रस २ स.. तिल तैलमें रुई भिगोकर स्तनों पर रखनेसे पतित और बकरीका दूध ४ सेर । और शिथिल स्तन दृढ़ और पुष्ट हो जाते हैं। फरक-आमला, लाख, हर्र, नागरमोथा, काथार्थ-छाल २ सेर, पानी १६ सेर,
सफेदचन्दन, सुगन्धवाला, चीर, देवदारु, मजीठ, शेष ४ सेर ।
लालचन्दन, कूठ, इलायची, तगर, जटामांसी,
छार छरीला, तेजपात, फूलप्रियंगु, शारिवा, बच, कल्कार्य-छाल १० तोले।
शतावर, असगन्ध, सोया और पुनर्नवा समान तिकतेल-१ सेर।
भाग मिश्रित २० तोले लेकर कल्क बनावें । (७४२८) श्रीबिल्वतैलम्
२ सेर तिलके तेलमें उपरोक्त क्वाथ, द्रव
पदार्थ और कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । ( भै. र. । अम्लपित्ता.)
अब पानी जल जाय तो तेलको छान लें। तत्पबालबिल्व पलशतं जलद्रोणे विपाचयेत् ।। श्चात् उसे पात्रमें भरकर उसका मुख बन्द करके पादावशेषे तस्मिस्तु तैलपस्थं विपाचयेत् ॥ | रख दें और १ मास पश्चात् काममें लावें । धात्रीरसं तैलसमं विगुणं छागदुग्धकम् । यह तेल अम्लपित्त, आठ प्रकारके शूल, कल्कीकृत्य पचेद्धीमान् धात्री लाक्षां तथापयाम॥ सूतिकारोग, हाथ पैर और शिरकी दाह, दुर्बलता,
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