Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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'भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[शकारादि चित्रेभसिंहाभिधतैलयोगानरः प्रमुच्येत सम- । (७४३२) शिवत्रहरतलम् - स्तकुष्ठात् ।
(र. चि. म. । स्त. ४) यावन्तो हि मया प्रोक्ता प्रयोगाः कुष्ठनाशनाः ।। त्रिफलाकायतः पायाः कर्तव्याः सूतवेदिभिः॥ मनःशिलार्कसेहुण्डपयो नीलिरसस्तथा।
| गन्धकं हरितालं च कासीसं हयमारकः॥ कलियारीकी जड़का रस २ सेर, दशमूलका
चित्रकं तुत्यकं मुस्तां मरिच रजनीद्वयम् । क्वाथ २ सेर, हुलहुलका रस २ सेर, नीलका स्वरस
त्रिफला भृराजश्च लागली दहनस्तथा ॥ २ सेर, कोयलका स्वरस २ सेर, घीकुमारका रस २ सेर, तिलका तेल २ सेर तथा कसीस, राई,
नीलोत्पलस्य कन्दं च लोहचूर्ण च बाकुची । कमोला, जवाखार, सुहागा, सज्जीखार, आककादूध,
| बीजं शेफालिकायाश्च विषं क्षारत्रयं समम् ।। सेहुंड (थूहर)का दूध, रसौत, भंगरेका रस, भिलावेके
| गिरिकन्या देवदाली तैलं ज्वालामुखीरसः । फल, नीमके बीज, त्रिफलाक्वाथ, गायका तक अपुन्नाटरसं दत्त्वा तैलं पाच्य प्रयत्नतः ।।
और शुद्ध लोहचूर्ण समान भाग मिश्रित ८ तोले । घमें स्थित्वा च ततैलं तनौ संलेपयेत्ततः। लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें और पानी | धर्म स्येयं द्वियामं हि चित्रनाशे तदुत्तमम् ॥ जल जाने पर तेलको छान लें।
शनैः शनैः खरे धर्मे चित्रं कृष्णं भविष्यति । इस तेलको श्वेतकुष्ठके स्थान पर मल कर
यदि वर्षसहस्त्रस्य भवेच्छि तथापि किम् ॥ थोड़ी देर तेज़ धूपमें बैठना और कुष्ठ रोगोचित प्रणश्यत्पतिवेगेन तेलवार्ताकभक्षिणः।। पथ्य पालन करना चाहिये।
माषामभोजिनः कारखेलकर्कोटकाशिनः ॥ ___ यह तेल सैंकड़ों वैद्योंसे त्यक्त भयंकर श्वेत
मण्डलानि प्रणश्यन्ति तथा सिध्मानि नाशयेत् ।
गजचर्माणि दहूणि पामाश्चापि विनाशयेत् ॥ कुष्ठको भी पूर्णतः नष्ट कर देता है।
रकसां सहसा हन्यात्परिसपं च दारुणम् । इसके प्रयोगकालमें दाभकी शय्या पर सोना नकाशन कान्तिसुतं तदने न कामदेवो मदऔर ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहिये । यथाशक्ति
मादधाति॥ दान देना और मारने के लिये कैद किये हुवे न कुडमस्यापि चकास्ति वर्णः तत्तैलसेवी हि प्राणियोंको मुक्त कर देना चाहिये । एवं समस्त
__ भवेत्सुरूपः॥ जीवोंके प्रति दया भाव रखना चाहिये।
कल्क-मनसिल, आकका दूध, सेहुंड हमारे ( रसचिन्तामणिकारके ) बतलाए हुवे (थूहर)का दूध, नीलका रस, गन्धक, हरताल, कुष्ठनाशक प्रयोग त्रिफलाक्वाथके साथ सेवन | कसीस, कनेरकी जड़, चीतामूल, नीलाथोथा, कराने चाहिये।
नागरमोथा, कालीमिर्च, हल्दी, दारुहल्दी, हर्र,
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